अगरबत्ती का कारोबार शहर में पहले से चल रहा है। करीब 15 बड़े उत्पादक और 100 से अधिक छोटी इकाइयां गृह उद्योग के रूप में काम कर रही हैं। इसी प्रकार एक बड़ी इकाई रिछाई औद्योगिक क्षेत्र में रॉ मटैरियल तैयार करती है। यहां बनी अगरबत्ती और रॉ मटैरियल की सप्लाई नागपुर, इंदौर, रीवा, सतना, दमोह, कटनी, सागर, रायपुर जैसी जगहों में होती है। जिले की बात करें तो रोजाना 20 से 25 टन अगरबत्ती की खपत है। वहीं देश की कुल खपत लगभग 10 लाख किलो प्रतिदिन है। इसमें देश भर में 4 लाख किलो अगरबत्ती तो बन जाती है लेकिन 6 लाख किलो के लिए चीन, इंडोनेशिया और वियतनाम जैसे देशों पर निर्भर रहना पड़ता है। इसके लिए बांस की स्टिक और रॉ मटैरियल इन्हीं जगहों से आता है।
क्या होगा क्लस्टर में
प्रस्तावित अगरबत्ती क्लस्टर में बांस से बना चारकोल और उसका पावडर, वुडन पावडर और जौश पावडर तैयार किया जाएगा। वहीं जब उचित किस्म के बांस की पैदावार जिले में शुरू होगी तब स्टिक भी इसी क्लस्टर में तैयार की जाएगी। क्लस्टर के अंतर्गत प्रस्तावित कॉमन फैसिलिटी सेंटर (सीएफसी) में अगरबत्ती निर्माण के लिए 500 मशीनों की स्थापना होगी। इनके जरिए रोजाना करीब 15 हजार किलो अगरबत्ती का निर्माण किया जाएगा। इन मशीनों पर काम पर करीब 800 लोग काम करेंगे। दूसरी ओर 150 से ज्यादा लोग चारकोल, जौश पावडर जैसे दूसरे मटैरियल को तैयार करेंगे।
यह है स्थिति
– जिले में 15 बड़े और 100 से ज्यादा छोटे अगरबत्ती निर्माता।– पांच सौ से ज्यादा लोगों को मिला हुआ है रोजगार। – प्रदेश के जिलों के अलावा रायपुर और नागपुर तक सप्लाई।
– 12 करोड़ की लागत से क्लस्टर का निर्माण प्रस्तावित।
केंद्र सरकार ने देश के भीतर अगरबत्ती उद्योग को बढ़ावा देने के लिए मसाला लगी अगरबत्ती की स्टिक के आयात पर रोक लगाई है। स्टिक अभी जरुरत के हिसाब से यहां नहीं बनती तो उसे विदेशों से मंगाया जा रहा है। लेकिन चीन से करीब 1 माह से इनकी सप्लाई नहीं हो रही है। कोरोना वायरस के कारण शिपिंग बंद है। इन स्थितियों को देखते हुए क्लस्टर निर्माण पर जोर दिया जा रहा है।
देवब्रत मिश्रा, महाप्रबंधक, जिला व्यापार एवं उद्योग केंद्र
बृषाल पोपटभाई, रॉ मटैरियल निर्माता