दूल्हादेव मंदिर खजुराहो के मंदिरों के दक्षिणी समूह से संबंधित एक प्रसिद्ध मंदिर है। यह मंदिर 1130 में चंदेलों ने बनवाया था और आज भी यह अपनी समृद्ध कला और वास्तुकला को दर्शाता है। इस मंदिर में पाँच छोटे कमरें और एक बंद हाल है। दूल्हादेव मंदिर भगवान शिव को समर्पित है।
भगवान शिव और उनकी पत्नी पार्वती की कई मूर्तियों से इस मंदिर को सजाया गया है। मूर्तियों की प्रशंसनीय फिनिशिंग उस शिल्प कौशल को दिखाती है। इस मंदिर के भीतर एक सुंदर शिवलिंग है। भीतरी हिस्सों में दीवारों और छत पर भारी और बारीक नक्काशी है। मंदिर में आने वाले इसे देखकर मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। मंदिर की अद्वितीय शैली और डिज़ाइन यहाँ आने वालों को आकर्षित करती है।
यह पूर्वाभि मंदिर शिव को समर्पित है। इस मंदिर का शिखर तीन पंक्ति रथों से निर्मित किया गया है। इसके महामंडप में कुछ विशेष अलंकरण और आलेखन हैं। इसका महामंडप अष्टकोणीय है, जिस पर 12 अप्सराओं की प्रतिमाएं अलंकृत हैं।
यह जिला मप्र की उत्तर-पूर्व सीमा पर स्थित है। यह जिला 8687 वर्ग किलो मीटर क्षेत्र में फैला हुआ है। इसकी सीमाएं पूर्व में उप्र के महोबा जिले को, पश्चिम में मप्र के टीकमगढ़ एवं दक्षिण-पश्चिम में सागर जिले की छूती है। छतरपुर से नजदीक ही स्थित खजुराहो के मुख्य मंदिरों में ये भी शामिल है। देशी-विदेशी पर्यटकों के बीच यह स्थान काफी पसंद किया जाता है।खजुराहो की ख्याति बॉलीवुड तक है यही वजह है कि फिल्मी कलाकार भी खजुराहो उत्सव के वक्त खजुराहो के अन्य मंदिरों के साथ ही इसे भी देखने आते हैं।
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