मामले से जुड़े एक सराकरी अधिकारी ने बताया कि किराने की दुकान और रेस्टोरेंट या ढाबा खोलने के लिए बहुत सारे नियम व शर्ते हैं और अब इन्हें घटाने पर विचार हो रहा है। इसके अलावा, उद्योग संवर्धन एवं आंतरिक व्यापार विभाग ( DPIIT ) लाइसेंस के नवीनीकरण की जरूरत को खत्म करने पर भी विचार कर रहा है। इससे छोटे कारोबारियों को बार-बार सरकारी कार्यालयों के चक्कर नहीं न काटने पड़ेंगे।
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क्या हैं मौजूदा नियम
मौजूदा समय में किराना दुकान को खोलने के लिए 28 तरह की मंजूरियों की जरूरत होती है। इनमें जीएसटी रजिस्ट्रेशन से लेकर शॉप्स ऐंड ऐस्टेब्लिशमेंट अधिनियम के तहत लाइसेंस लेना, बाट-माप विभाग से लेकर कीटनाशक और दूसरी चीजों के लिए अनुमति लेनी होती है। इसी तरह, ढाबा या रेस्टोरेंट के लिए करीब 17 मंजूरियों की जरूरत होती है। इनमें अग्निशमन विभाग से नॉन ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट (एनओसी), खाद्य विभाग, नगर निगम की मंजूरी और यहां तक कि रेस्टोरेंट में संगीत बजाने के लिए अलग से मंजूरी की जरूरत होती है।
ईज ऑफ डूईंग बिजनेस रैंकिंग सुधारने पर भी सरकार की नजर
सरकार के इस कदम के पीछे एक वजह यह भी बताई जा रही है कि व्यापक स्तर पर किए जाने वाले इन दो कारोबारों को आसान बनाने से कारोबारी सहूतिलयत यानी ईज ऑफ डूइंग बिजनेस के मामले में देश की रैंकिंग में भी सुधार आएगा। सरकार ने भारत की रैंकिंग को शीर्ष 50 में पहुंचाने का लक्ष्य रखा है। पिछले वर्ष भारत की रैंकिंग 23 पायदान के सुधार के साथ 77वें स्थान पर रही है। नैशनल रेस्ट्रॉन्ट्स असोसिएशन ऑफ इंडिया ( NRAOI ) ने पुराने कानून के प्रचलन का हवाला देते हुए कहा कि रेस्तरां मालिकों के लिए यह एक रुकावट है। उदाहरण के लिए, एक सबवे रेस्तरां को राजधानी में एक सैंडविच बेचने के लिए पुलिस को करीब 24 दस्तावेज जमा कराने होते हैं, जबकि एक हथियार को सरकारी नियमों से खरीदने के लिए सिर्फ 13 डॉक्युमेंट्स की जरूरत होती है।
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खत्म हो सकती है लाइसेंस रिन्यू करने की प्रक्रिया
एक सराकरी अधिकारी ने बताया कि किराने की दुकान खोलने के लिए बहुत सारे नियम व शर्ते हैं और अब इन्हें घटाने पर विचार हो रहा है। इसके अलावा, डिपार्टमेंट फॉर प्रमोशन ऑफ इंडस्ट्री ऐंड रिटेल ट्रेड ( DPIIT ) लाइसेंस रिन्यू करने की प्रक्रिया खत्म करने पर भी विचार कर रहा है। ऐसा करने का मकसद छोटे कारोबारियों को उनकी दुकानें और रेस्ट्रॉन्ट्स चलाने में मदद करना है ताकि उन्हें बार-बार सरकारी कार्यालयों में इन्सपेक्टर्स के आगे-पीछे चक्कर न काटने पड़े।
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