हाल ही में इस फेडरेशन के प्रबंधकों ने कश्मीर के राज्यपाल से मुलाकात भी की है। ऐसे में अब केंद्र सरकार के इस कदम के बाद कश्मीर में डेयरी उद्योग को लेकर एक नई उम्मीद जगती हुई दिखाई दे रही है।
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क्यों विकसित नहीं हुआ कश्मीर में डेयर प्रोडक्ट का कारोबार ?
सूत्रों से प्राप्त जानकारी के मुताबिक कश्मीर के कई उच्चस्तरीय अधिकारियों से बातचीत कर कश्मीर में डेयरी क्षेत्र के लिए तकनीक सपोर्ट के साथ ही प्रबंधन एवं दूध खरीदारी सिस्टम को डेवलप करने की इच्छ जताई है। मौजूदा समय में कश्मीर में इस क्षेत्र में कुछ विकास नहीं हुआ है और इससे जुड़े लोगों की संख्या भी कम है। दरअसल, कश्मीर में दूध उत्पादन की लागत बहुत अधिक और निजी कंपनियों को दूध उत्पादकों से मुकाबला करना पड़ता है। यही कारण है कि कश्मीरी लोग डेयर क्षेत्र से कमाई करने पर कुछ खास ध्यान नहीं देते हैं।
कॉपरेटिव मॉडल के तहत होगा काम
बता दें कि पिछले माह 5 जुलाई को पेश किये गए बजट में केंद्र सरकार ने कृषि क्षेत्र में बुनियादी सुविधाओं के विकास की घोषण की थी। इसी के तहत अब जीसीएमएमएफ की तरफ से जम्मू-कश्मीर के किसानों को डेयरी उद्यमी के तौर पर विकसित किया जायेगा। इसके लिए उन्हें हर प्रकार की सहायता दी जायेगी। कॉपरेटिव मॉडल के तहत वहां के मवेशियों के खाद्य पदार्थ बनाने का काम शुरू किया जायेगा। इस तरीके से दूध की प्रोसेसिंग और मार्केटिंग की भी व्यवस्था की जायेगी।
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क्या है मौजूदा स्थिति
मौजूदा समय में जम्मू-कश्मीर में केवल दो ही मिल्क प्रोसेसिंग यूनिट काम कर रहे हैं, जिसकी कुछ क्षमता प्रतिदिन 50,000 लीटर दूध प्रोसेस करने की है। कश्मीरी महिलायें सेल्फ हेल्प ग्रुप के तहत डेयरी के क्षेत्र में काम करती हैं। इन प्रोसेस्ट 20-25 हजार लीटर को जेकेएमपीसीएल प्रतिदिन खरीदार है, जिसे स्नो कैप के नाम से बेचा जाता है। श्रीनगर और नजदीकी इलाकों में अनपैक्ड दूध ही बेचा जाता है।