इंदौर. तवलीन फाउंडेशन के हैपीनेस अभियान के 10 साल पूरे होने पर शुरू की गई मीट द मास्टर्स शृंखला में हैप्पी स्वामी के नाम से मशहूर स्वामी अनुभवानंद सरस्वती ने हैपीनेस पर व्याख्यान दिया। सजीएसआइटीएस के गोल्डन जुबली हॉल में हुए इस व्याख्यान का विषय था ‘यही है जिंदगी- मौज में रहो।’ व्यंग्यात्मक शैली में दिए अपने व्याख्यान में हैप्पी स्वामी ने कई बार लोगों को हंसाया।
स्वामी अनुभवानंद ने कहा कि जीवन में दु:ख आना एक बात है और दु:खी होना दूसरी बात है। दुखी होने से इंकार करना ही असली सुख है। जीवन में दु:खों का आना जरूरी है। दु:ख आना चाहिए पर दुखों के कारण दु:खी होने के बजाय हमें दुखी होने से इनकार करने की क्षमता होना चाहिए। भगवान श्रीकृष्ण के जीवन में जितने दु:ख थे, उसका तो एक अंश भी हम सबके जीवन में नहीं आया, लेकिन फिर भी गीता में उन्होंने कहा है कि दु:खी होने से इंकार करना ही योग है।
जीवन को अवकाश जैसा समझें, यहां आए तो दु:खी क्यों रहें उन्होंने कहा कि हम दु:खी इसलिए होते हैं, क्योंकि अपने दु:ख के लिए हमेशा दूसरों को जिम्मेदार ठहराते रहते हैं। हमेशा शिकायत करते रहते हैं। हम अपने मन की सूक्ष्मता बढ़ाएं और सोचें कि जगत में कुछ सीखने के लिए आए हैं। यह जगत में जीवन वैसा ही है, जैसे हम अवकाश मनाने किसी दूसरी जगह जाते हैं। अवकाश के दौरान हम रोजमर्रा की चिंताआंे से दूर खुश रहते हैं, वैसे ही हम जीवन को समझें कि हम यहां अवकाश पर आए हैं, तो दु:खी क्यों हों। कई बार व्यक्ति यही सोच कर दु:खी होता है कि उसकी मौत के बाद पत्नी-बच्चों का क्या होगा। यह क्यों नहीं सोचते कि हम जब इस दुनिया में नहीं थे, तब यहां कौन सी कमी थी और यहां नहीं रहेंगे, तब कौन सी कमी हो जाएगी।
खुद से बात नहीं करना ही मौन है मौन व्रत का मतलब यही नहीं कि दूसरों से बात बंद कर दो, बल्कि अपने आप से बात करना बंद करो, यही असली मौन है। खुद से बात बंद करना मन की तपस्या है। इसका अभ्यास करें। पहले केवल दस-दस सेकंड के लिए करें और फिर समय बढ़ाएं। खुद से बात करना बंद करेंगे तो चित्त वृत्ति हट जाएगी और मन की सूक्ष्मता बढ़ जाएगी। फिर आपको वह दिखेगा जो आम आदमी को नहीं दिखता।
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