इधर, अब ठेकेदारों की कार्यशैली पर सवाल उठने लगे हैं। निगम के हर विभाग में काम लेने के लिए ठेकेदारों में स्पर्धा चल रही है। इसका परिणाम जनता को घटिया और गुणवत्ताहीन होने वाले निर्माण के रूप में भुगतना पड़ता है। पैसों और समय की बर्बादी अलग होती है। घटिया और गुणवत्ताहीन निर्माण न हो। यह देखना निगम के बड़े अफसरों और इंजीनियरों की जिम्मेदारी है, जो कंसल्टेंट के भरोसे रहते हैं और मौके पर बहुत कम जाते हैं। ठेकेदार मनमानीपूर्वक काम करते और कार्य गुणवत्ता बिगड़ती है। इससे अफसर भी जनता की अदालत के कठघरे में खड़े नजर आते हैं। स्पर्धा के चलते कई ठेकेदार निगम के तय रेट से कम में ठेका लेकर काम बिगाड़ रहे हंै। घटिया निर्माण कर रहे हैं। कम रेट में टेंडर की फाइलें लगा रहे हैं। उदाहरण के लिए एसओआर के अनुसार किसी निर्माण कार्य का रेट निगम ने 1000 रुपए तय किया है, तो स्पर्धा के चलते कई ठेकेदार 700 रुपए में काम करने का टेंडर डाल देते हैं। इससे काम गुणवत्ताहीन होता है और मटेरियल क्वालिटी भी घटिया होने से जल्द ही काम खराब हो जाता है।
सुरक्षा निधि राशि को एफडी के रूप में लेने की मांग बैठक में रखी जाएगी, जो ठेकेदार वर्षों से कर रहे हैं। इससे निगम पर आर्थिक बोझ नहीं पड़ेगा। अभी एफडी जमा होने पर ठेकेदार को नकद देना पड़ता है। एफडी रहेगी तो रिटर्न हो जाएगी और निगम को देने में कोई दिक्कत नहीं होगी। सरकार का नियम भी एफडी लेने का है।