साइकिल से होता था प्रचार
शतक की तहलीज पर पहुंच चुके 98 वर्ष के बालाराम पाटीदार आज भी निशुल्क पशुओं का उपचार कर रहे हैं। इतनी उम्र में भी उन्हें 70 साल पुरानी बाते ऐसे याद है, जैसे कल की ही बात हो। उन्होंने बताया कि 1952 में जब महू विधानसभा बना तब से लेकर आज तक मतदान कर रहा हूं। इन 71 सालों में चुनाव और प्रचार-प्रसार प्रक्रिया में कई बदलाव देखे हंै। एक दौर था जब साइकिल और पैदल ही कार्यकर्ता और प्रत्याशी गांव-गांव निकल जाते थे। कई शाम होनेे पर गांव में ही रुकना पड़ता था। ग्रामीण अंचलों में चुनाव संपन्न कराने आने वाले कर्मचारी बेलगाड़ी से चुनाव सामग्री लेकर आते थे। दौर बदला फिर ट्रैक्टर से चुनावी प्रचार शुरू हो गया। पहले प्रत्याशी वोट के लिए प्रलोभन के तौर पर धोती दिया करते थे। 1975 में इमरजेंसी लगने पर करीब 19 महीने तक जेल में भी रहे। लेकिन अब चुनाव को लेकर तौर तरीके बदल गए है। सोशल मीडिया का अधिक उपयोग हो रहा है। इवीएम आने से चंद घंटों में ही प्रत्याशी की जीत-हार तय हो जाती है।
तीन दिन तक चलती मतगणना
1941 में जन्में गोंविद आर्य को अब पुरानी बाते ज्यादा याद नहीं रहती है। लेकिन कुछ किस्से आज तक इन्हें मुहं जुबानी याद है। उन्होंने बताया कि आज-कल तो छोटी-छोटी जगहों पर भी बड़े नेताओं की सभा आयोजित हो जाती है, लेकिन 1960 के दौर सिर्फ बड़ी जगहों पर ही सभाएं होती थीं। इन सभाओं के लिए लोग घर से निकलकर सभा स्थल तक पहुंचते थे। मुझे याद है 1967 के दौरान महू के युवा नेता भेरूलाल पाटीदार ने पहली बार क्षेत्र में स्कूटर खरीदा था, जब हमने इस से प्रचार होते हुए देखा था।
सन ठीक से याद नहीं आ रहा है, लेकिन एक बार लोकसभा चुनाव में कई उम्मीदवार खड़े थे। तब मतगणना लगातार तीन दिनों तक चली थी। महू के दोनों पार्टियों के कार्यकर्ता इन तीन दिनों तक इंदौर में डटे रहे। लेकिन अब कुछ घंटों में ही इवीएम से परिणाम आ जाते हैं। 1960 के दौर में चुनाव 10 से 12 हजार रुपए में हो जाता था। पूरे महू में ही चलित भोंगा हुआ करता था, जिससे प्रचार होता था। पहले जुलूस के दौरान लाठीचार्ज भी होता था। लेकिन अब दौर बदल गया है। प्रचार प्रसार के लिए नई-नई तकनीक आ गई हैं।