पेरु नेशनल यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर गेब्रियल प्रिटो ने बताया कि बलि की जगह को चिमू साम्राज्य में ही बनाया गया था। माना जाता है कि अल नीनो की वजह से पेरू के पास स्थित समुद्र में तूफान आया था, जिसकी वजह से त्रुजिलो में बाढ़ की स्थिति पैदा हो गई थी। इसी से बचाव के लिए लोगों ने भगवान को अपने बच्चों की भेंट चढ़ाई थी। गेब्रियल ने बताया कि बलि स्थल से मिले सभी बच्चों के अवशेष समुद्र की ओर सिर किए हुए थे, यानी उन्हें इस तरह से ही दफनाया गया था।
रिपोट्र्स के मुताबिक, बच्चों की हड्डियों में जख्मों के निशान थे। साथ ही उनकी कई पसलियां भी टूटी पाई गईं, जिससे पता चलता है कि उनके दिलों को निकाल लिया गया था। इसके अलावा उनके अवशेषों पर गाढ़े लाल रंग की परत पाई गई, जिससे ऐसे संकेत मिलते हैं कि उन्हें अनुष्ठान के बाद मारा गया था।
यहां 2011 में पहली बार खुदाई शुरू की गई थी। तब यहां खुदाई के दौरान 42 बच्चों और 76 लामाओं के अवशेष मिले थे। हालांकि, इस हफ्ते खुदाई के बाद कुल 140 बच्चों के अवशेष मिलने का ऐलान किया गया है। नेशनल ज्योग्राफिक की रिपोर्ट के मुताबिक, बच्चों की उम्र 5 से 14 साल के बीच रही होगी। बलि स्थल के पास से मिले कपड़े और दूसरी चीजों की कार्बन डेटिंग (उम्र पता करने का एक तरीका) से पता चला है कि ये घटना करीब साल 1400 से 1450 के बीच हुई थी।
मध्यप्रदेश में इंदौर के पास कजलीगढ़ भी नरबलि के लिए बदनाम रहा है। माना जाता है कि यहां पर इंदौर के महाराज होलकर का खजाना गढ़ा हुआ है। इस खजाने को खोजने की चाह में यहां पर नरबलि की कई घटनाएं हो चुकी हैं। हालांकि इसके कभी भी पुख्ता प्रमाण नहीं मिले हैं इन बातों का जिक्र लोगों की कहानियों में ही आता है।