मंदिर का निर्माण चूंकि इंदौर के अन्नपूर्णा आश्रम ट्रस्ट के तत्वावधान में किया गया है, लिहाजा बड़ी संख्या में इंदौर एवं मालवांचल के विद्वान, श्रद्धालु एवं दानदाता भी इस अनुष्ठान में पहुंचेंगे। प्राण-प्रतिष्ठा के लिए 1931 किलो वजनी मां अन्नपूर्णा की प्रतिमा इंदौर से पहुंच गई है। मां सरस्वती की 750 किलो और महाकाली की 470 किलो वजनी पंचधातु की प्रतिमाएं भी यहां स्थापित होंगी। मुख्य मंदिर के वाम भाग में भैरवनाथ का मंदिर भी आकार ले चुका है, जिसमें संगमरमर की 600 किलो की प्रतिमा स्थापित होगी।
आश्रम के महामंडलेश्वर स्वामी विश्वेश्वरानंद गिरि एवं ट्रस्टी श्याम सिंघल ने बताया, इंदौर एवं ओंकारेश्वर के बाद त्र्यंबकेश्वर में भव्य मंदिर निर्माण का स्वप्न आश्रम के संस्थापक ब्रह्मलीन स्वामी प्रभानंद गिरि ने 27 वर्ष पूर्व संजोया था। इसके लिए तीन लाख रुपए भी जमा कर रखे थे, लेकिन उनके महाप्रयाण के कारण योजना मूर्त रूप नहीं ले पाई। बाद में वर्तमान महामंडलेश्वर और उनके शिष्य स्वामी विश्वेश्वरानंद गिरि ने 1995 में त्र्यंबकेश्वर पहुंचकर आश्रम के लिए नीलगिरि पर्वत पर करीब 4 एकड़ भूमि अग्नि अखाड़े के सहयोग से हासिल की। 2002 तक पहाड़ी को समतल और व्यवस्थित आकार दिया गया। भूमिपूजन के बाद 2002 में ही मंदिर निर्माण का काम शुरू हुआ। 15 वर्षों की मेहनत के बाद अब यह मंदिर 18 से 28 फ रवरी तक 11 दिवसीय महायज्ञ एवं प्राण-प्रतिष्ठा महोत्सव के बाद आम भक्तों के लिए आस्था का कें द्र बन जाएगा। प्राण-प्रतिष्ठा का मुख्य महोत्सव 21 फरवरी को होगा।
छैनी से शिल्पांकन
मंदिर की बाहरी दीवारों पर छैनी-हथौड़ी की मदद से समुद्र मंथन, श्वि-पार्वती विवाह, विष्णु-लक्ष्मी प्रसंग, चौसठ योगिनी, राम-रावण युद्ध, राधा-कृष्ण लीला सहित अनेक धार्मिक और पौराणिक गाथाएं मकराना के शिल्पकारों ने संजीदगी से उकेरी हैं। अंदर फर्श पर गलीचा टाइल्स लगाई गई हंै। गुंबज के आंतरिक हिस्सों में भी आकर्षक शिल्पांकन किया गया है। महत्वपूर्ण खूबी यह है, मंदिर में मां के दर्शन करते हुए वाम भाग की ओर गर्दन घुमाते ही मंदिर के कलश और ध्वजा के दर्शन भी एक जगह खड़े रहकर हो सकते हैं।
समुद्र तल से 2300 फ ीट ऊंचाई पर निर्माणमंदिर का निर्माण समुद्र तल से 2300 फ ीट ऊंचाई पर 7200 वर्गफ ीट मैदान में किया गया है। नींव से 75 फ ीट ऊंचाई पर बने इस मंदिर में मां अन्नपूर्णा सहित चार प्रतिमाएं स्थापित होगीं। ये सभी सोना, चांदी, तांबा, जस्ता और टीन से निर्मित पंचधातु से बनी हैं। मां अन्नपूर्णा की प्रतिमा जबलपुर में बनी एवं पीथमपुर में ढाली गई है। वर्ष 2014 में 29 अक्टूबर को निकली रथ यात्रा के साथ 11 नवंबर को त्र्यंबकेश्वर पहुंचाया गया था। मां सरस्वती और महाकाली की प्रतिमाएं मुंबई के मूलचंद जैन परिवार के सौजन्य से पालीताणा (गुजरात) में बनवाई गई हैं। भैरवनाथ की प्रतिमा समाजसेवी किशोर गोयल के सौजन्य से
जयपुर से बुलवाई गई है।