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इंदौर में भी है एक… ‘काला चीता’

– चर्चा में हैं हम : 60-70 के दशक में इंदौरी पहलवान ने खूब कमाया नाम

इंदौरSep 18, 2022 / 11:37 am

Manish Yadav

इंदौर में भी है एक... 'काला चीता'

इंदौर में भी है एक… ‘काला चीता’

मनीष यादव@ इंदौर
इन दिनों हमारे देश में विलुप्त हो चुके चीते की खूब चर्चा है। इंदौर में भी 60-70 के दशक में एक चीता चर्चित था… वो भी काला चीता। जी हां, ये कोई वन्य प्राणी नहीं, बल्कि एक पहलवान हैं। जिन्होंने अपने श्याम वर्ण और कुश्ती लडऩे के अंदाज, चुस्ती-फूर्ती के चलते ये नाम पाया और कई पहलवानों को धूल चटाई।
ये काला चीता हैं, पहलवान मो. शफी कुरैशी उर्फ गम्मू पहलवान। 60-70 के दशक में इंदौर में कई नामी पहलवान थे। उस दौर में गम्मू ने अपना परचम लहराया। गद्देवाली कुश्ती नहीं, बल्कि मिट्टी में लडऩे का चलन था। देश के कई हिस्सों में जाकर मुकाबले लड़े और इनाम जीते। उनकी कुश्ती लडऩे की कला, चुस्ती-फुर्ती, चपलता देखकर उनके चाहनेवालों ने उन्हें काला चीता नाम दे दिया। मुकाबले में प्रतिद्वंद्वी पहलवान जब तक उनकी अगली चाल समझ पाता, वे दांव लगा चुके होते थे। खूब नाम कमाया। अब वे 74 साल के हो चुके हैं। इस उम्र में पहले की तरह कसरत तो नहीं कर पाते, लेकिन आज भी सुबह 5 बजे से दिन की शुरुआत हो जाती है। सुबह घूमने से लेकर सारे नियम आज भी पालन कर रहे हैं। अब वे नई पीढ़ी को तैयार कर रहे हैं। वे विजय बहादुर उस्ताद व्यायामशाला में बच्चों को कुश्ती लडऩे के गुर सिखा रहे हैं।
15 साल की उम्र में की शुरुआत
गम्मू पहलवान ने बताया कि कलाली मोहल्ला छावनी में रहा करते थे। घर के नीचे ही अखाड़ा था। बड़े भाई मो. इशहाक कुरैशी को कुश्ती लडऩे का शौक था। वह ज्यादा पहलवानी नहीं कर सके। इसके चलते उनकी इच्छा उन्हें पहलवान बनाने की इच्छा थी। उन्होंने इस बारे में बात की और मैं तैयार हो गया। 15 साल की उम्र से दांव-पेंच सीखना शुरू किया। पहले नबी बख्श अखाड़े में दंड-बैठक पेलते रहे, फिर विजय बहादुर उस्ताद व्यायामशाला में पहलवानी के गुर सीखने जाने लगे।
पलासिया में लड़ी पहली कुश्ती
गम्मू बताते हैं कि उन्होंने पहली कुश्ती पलासिया चौराहा पर लड़ी थी। वहां एक बड़ा गड्ढा हुआ करता था, जिसमें कुश्ती होती थी। पहली कुश्ती एक नामी पहलवान के भाई से हुई, उसे तारे दिखा दिए। इस जीत से उनका हौसला बढ़ गया और फिर उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। देशभर में जाकर कुश्ती लड़ते रहे। उस समय इतने मुकाबले नहींं हुआ करते थे। महाराष्ट्री केसरी कुश्ती स्पर्धा होती थी। उसमें महाराष्ट्र के ही पहलवान लड़ा करते थे। आयोजक ही आना-जाने का खर्चा देकर कुश्ती लड़वाया करते थे
पावडर नहीं, दूध-बादाम लो
नई पीढ़ी के पहलवानों को गम्मू पहलवान कहते हैं कि जब वह पहलवानी करते थे, उस समय वह शारीरिक दम-खम के लिए दूध, बादाम और फल खाते थे। आजकल के पहलवान बॉडी बनाने के चक्कर में शक्तिवर्धक पावडर, दवाइयों का सहारा ले रहे हैं। उनसे मेरा यही कहना है कि अभी तो हो सकता है, इनसे फायदा दिखे। बाद में परेशानी झेलनी पड़ सकती है, इसलिए इनका सहारा नहीं लें।

इंदौर में भी है एक... 'काला चीता'
मुख्यमंत्री सेठी ने दी उपाधि
नेहरु स्टेडियम के उद्घाटन के समय तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रकाशचंद सेठी इंदौर आए थे। गम्मू के अनुसार उनके सामने मेरी कुश्ती हुई। मेरे दांव-पेंच,चुस्ती-चपलता देख वे इतने प्रभावित हुए कि मंच पर बुलाया और पूछा कि इतनी तेजी से लड़ते हो, बाहर कुश्ती लडऩे जाते हो? उस वक्त उन्होंने मुझे काला चीता कहा, इसके बाद से मेरे नाम के आगे काला चीता लग गया।
– 15 साल की उम्र से की थी पहलवानी की शुरुआत।
– 16 वर्ष में लड़ा पहला दंगल।
– पूर्व विधायक रामलाल यादव से हुए मध्यप्रदेश केसरी मुकाबले में उप विजेता रहे।
– मप्र के लगभग हर जिले में कुश्ती लड़ी। इसके अलावा महाराष्ट्र, राजस्थान व उत्तर प्रदेश में भी दिखाए दांव-पेंच
– बुरहानपुर व भोपाल के पहलवानों से हुई कुश्ती यादगार रही।

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