हम बात कर रहे हैं मध्य प्रदेश के इंदौर जिले के अंतर्गत आने वाले देपालपुर की, जहां आज भी होलिका दहन के लिए आदि काल की परंपरा ही निभाई जाती है। यहां धाकड़ सेरी मोहल्ले में चकमक पत्थरों की मदद से आदि काल की तर्ज पर ही आग उत्पन्न कर होलिका का दहन किया जाता है। इस कार्य को नगर पटेल रामकिशन धाकड़ अंजाम देते हैं। बताया जा रहा है कि, रामकिशन धाकड़ 9 पीड़ियों से होलिका दहन करते आ रहे हैं।
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दिनभर चलते हैं ये काम
अलसुबह शुभ मुहर्त में होलिका दहन किया गया। वहीं, दोपहर 3 बजे के बाद नगर के ठाकुर मोहल्ले की गैर आती है। नगर पटेल को आमंत्रित कर गल देवता मैदान पर ढोल बजाकर और निशान लेकर ले जाते हैं और 6 फिट लंबी चुल में धधकते अंगारों के बीच नगर के पटेल सबसे पहले चुल की पूजा कर स्वयं धधकते अंगारों पर से निकलकर गल बाबा की पूजा करते हैं, फिर मनन्तधारी अंगारों से निकलते हैं। इसी के साथ एक दिवसीय मेले का शुभारंभ भी किया जाता है।
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हजारों साल से चली आ रही परंपरा
बताया जाता है कि, ये आदि काल के समय की प्राचीन प्रक्रिया है, जिसमें पत्थरों को रगड़ कर अग्नि पैदा की जाती थी। वहीं, आज भी उसी प्रकार से यहां प्राचीन काल के इन सफेद कलर के चकमक पत्थरों को रगड़ कर चिंगारी से आग लगाकर होली जलाई जाती है, जो कि पूरे देश में एकमात्र होली जलाने की प्रक्रिया बताई जाती है, जिसे देखने के लिए कई प्रदेशों से लोग यहां पहुंचते हैं।