रिश्तों में रंग भरने वाले इस त्यौहार की मिठाई का सुख समृद्धि वाला रंग है तभी तो सिंधी समाज के लोग विशेष रूप से इस मिठाई को अपनी बहन-बेटियों और अन्य रिश्तेदारों को जरूर भेजते हैं। घर आने वाले मेहमानों को भी मिष्ठान के रूप में घीयर ही परोसा जाता है। कुल मिलाकर ये मिष्ठान सिंधी समाज की परंपरा का एक अभिन्न हिस्सा है। घीयर की मिठास परंपरा का रूप है। वैसे देखने पर तो घीयर एक जलेबी की तरह नजर आता है, लेकिन इसका स्वाद और आकार जलेबी से अलग होता है।
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साल में सिर्फ एक बार मिलता घीयर
सामाज के जानकारों की मानें तो होली पर कई घरों में तो विशेष रूप से घीयर बनाया जाता है। लेकिन अब तो शहर की मिठाई दुकानों पर घीयर शिवरात्रि के बाद से बिकना शुरु हो जाता है। वैसे कभी घीयर का स्वाद चखने को मिले या न मिले पर साल में सिर्फ एक बार होली पर्व पर इसका स्वाद चखने को मिल ही जाता है। घीयर की डिमांड होली पर ही सबसे अधिक रहती है। इस विशेष मिठाई को सिर्फ इंदौर में ही खाना पसंद नहीं किया जाता, बल्कि शहर से इस मिठाई को यूरोप, अफ्रीका, अमेरिका, दुबई और ओमान जैसे देशों में रहने वाले सिंधी समाज के लोग हर साल इसे ऑर्डर पर मंगाते हैं।