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इंदौर

MP में पहली बार क्रिटिकल ऑपरेशन, डॉक्टर ने रिसर्च कर माथे पर ऐसे उगाई नाक

मध्यभारत में पहली बार प्री फैब्रिकेटेड फोरहेड फ्लैप रायनोप्लास्टि सर्जरी, शहर के सर्जन डॉ. अश्विनी दाश का कमाल

इंदौरJul 02, 2016 / 08:28 pm

Kamal Singh

First operation of its own kind Don by indore doct

First operation of its own kind Don by indore doctors


इंदौर.
मेडिकल साइंस के क्षेत्र में देश का पहला क्रिटिकल ऑपरेशन इंदौर में हुआ, जिसमें डॉक्टर ने रिसर्च कर 12 साल के एक बच्चे की नाक को माथे पर उगा दिया है। ऑपरेशन की सफलता के बाद चिकित्सा जगत के लोग ही नहीं बल्कि मरीज और परिजन भी आश्चर्यचकित है।

मेडिकल साइंस और टेक्नोलॉजी के संगम ने उनकी रफ्तार को और तेजी दी है। अब कई जटिल बीमारियां आसानी से दूर हो रही हैं। ऐसा ही एक केस शहर के सर्जन डॉ. अश्विनी दाश ने सॉल्व किया है। दरअसल 12 वर्ष पहले अरुण पटेल की उम्र महज एक माह की थी जब गलत इंजेक्शन लगने से उसकी नाक गल गई। ऐसे में अरुण के परिवार पर भी परेशानियों का पहाड़ टूट गया। शहर के सर्जन डॉ. अश्विनी ने ये चुनौती स्वीकार की और मध्यभारत में पहली बार प्री फैब्रिकेटेड फोरहेड फ्लैप रायनोप्लास्टि सर्जरी के जरिये अरुण को दोबार नाक लगाई गई।

गांव वालों ने बनाई कई कहानियां
बडऩगर के पास एक छोटे से गांव छानखेड़ी के रहने वाले अरुण के नाना गोवर्धन सिंह ने बताया, बिना नाक के बच्चे को देख गांव के लोगों ने अलग-अलग तरह की कहानियां बनाना शुरू कर दी थीं। पिछले साल गांव में प्लास्टिक सर्जरी करवाकर लौटे एक परिवार के सदस्य ने बताया कि, इसका इलाज संभव है, शहर में दिखाना चाहिए। इसके बाद हम इंदौर लेकर आए।



First operation of its own kind Don by indore doct























डॉक्टर ने कहा, बेहद चुनौतीभरा था यह केस था

डॉ. दाश ने बताया, अरुण को देखने के बाद इलाज के लिए विभिन्न तरीकों पर रिसर्च की। सामान्य रायनोप्लास्टि इसलिए संभव नहीं थी क्योंकि अरुण की नाक चेहरे पर थी ही नहीं। इसलिए अरुण की प्री फैब्रिकेटेड फोरहेड फ्लैप रायनोप्लास्टि करने का निर्णय लिया। एक बिना नाक के लड़के के चेहरे पर उसके मांस से बने नाक को ड्राफ्ट करने की प्रक्रिया में लगभग एक साल का समय लगा।

तीन स्टेज में हुआ जटिल ऑपरेशन

First operation of its own kind Don by indore doct



























1. अरुण के माथे पर जगह बनाकर एक सिलिकॉन की थैली स्थापित की। यह प्रक्रिया टिशू एक्सपांड करने के लिए थी। तीन महीने तक माथे पर लगी थैली ने फैलते हुए एक स्थान निर्मित किया।

2. छाती के निचले हिस्से से कार्टिलेज निकाली गई, जिससे उसके चेहरे की संरचना के अनुरूप एक कृत्रिम नाक तैयार की। इसे माथे पर बनाई गई जगह पर रखा। तीन महीनों तक नाक को माथे के भीतर ही रखा, जिससे सामान्य अंगों की तरह काम करने लगे। रक्त का प्रभाव चालू हो और टिशू जीवित होकर एक जैसा कार्य करने लगें।

3. तीन माह बाद माथे के अंदर कार्टिलेज की बनी नाक को निकालकर नाक के स्थान पर लगाया गया। जहां उसे हर बारीक से बारीक नस से जोड़ा गया, जिससे ब्लड सर्कुलेशन सामान्य हो सके।

आत्मविश्वास से भर गया हूं
अरुण ने बातचीत में बताया, पहले गांव के बच्चे और देखने वाले चिढ़ाते थे। अब ऑपरेशन और चेहरे पर नाक लगने के बाद ऐसा लग रहा है मानो नया जीवन मिल गया हो। इसलिए आत्मविश्वास से भर गया हूं।

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