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इंजेक्शन के फार्मूले को जानकर क्या बोले एक्सपर्ट?
इंदौर के एक कोविड अस्पताल में चिकित्सक महेश गुप्ता का कहना है कि, जिस फॉर्मूले से ये फर्जी फार्मा कंपनी रेमडेसिविर इंजेक्शन बना रही थी, वो जिस किसी को भी लगा होगा, मुम्किन नहीं कि वो मरीज बच सका होगा। वहीं, दूसरी तरफ, महाराष्ट्र के मुंबई से संचालित होने वाली इस नकली फार्मा कंपनी गैंग को पुलिस टीम द्वारा गुजरात के सूरत से दबोचा गया है। पूछताछ में आरोपियों ने कबूल किया कि, वो अब तक देशभर में एक लाख से अधिक नकली रेमडेसिविर इंजेक्शन की सप्लाई कर चुके हैं। पूछताछ में ये भी खुलासा हुआ कि, जिस इंजेक्शन को मुकम्मल तौर पर बनाने में उनकी मात्र 80 रुपये लागत लगती थी, उसे वो 35 से 40 हजार रुपये तक में जरूरतमंदों को बेचा करते थे।खरीदार की हैसियत और उसकी मरीज के प्रति चिंता भी इंजेक्शन की कीमत तय करती थी। बताया जा रहा है कि, कुछ लोगों को तो आरोपियों ने इंजेक्शन 50 हजार रुपये तक में बेचा है।
40 हजार रुपये तक में बेचते थे 80 रुपये में तैयार हुआ ये इंजेक्शन
आरोपियों ने बताया कि, सूरत में मास्क और ग्लब्स का कारोबार करने वाला कौशल वोरा और उसका पार्टनर पुनीत शाह अब तक 1 लाख से ज्यादा नकली रेमडेसिविर इंजेक्शन तैयार कर मुंबई के रास्ते देशभर में सप्लाई कर चुका है। आरोपियों का कहना है कि, वो कबाड़ से इंजेक्शन की खाली बोतलें खरीदते थे। साथ ही मुंबई की एक प्रिंटिंग प्रेस से रैपर तैयार कराते थे। इसके अलावा, गुजरात के मोरबी स्थित फार्म हाउस पर नमक और ग्लूकोज के मिश्रण से नकली इंजेक्शन बनाए जाते थे। एक इंजेक्शन की अधिकतम कीमत 80 रुपए होती है, जिसे दलालों की मदद से देशभर के बाजारों में औसतन 35 से 40 हजार रुपये तक में बेचा जाता था।
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मध्य प्रदेश में भी हुई नकली इंजेक्शन की सप्लाई
फिलहाल, शनिवार को की गई छापामारी में सूरत पुलिस ने फार्म हाउस से करीब एक लाख ही और नकली इंजेक्शन जब्त किए हैं। आरोपियों ने पूछताछ में बताया कि, उन्होंने मध्य प्रदेश में करीब 3 से 4 हजार नकली इंजेक्शन की सप्लाई की है। अब तक की पूछताछ मे उन्होंने कबूल किया कि, उन्होंने इंदौर (लिंबोदी) के सुनील मिश्रा को एक हजार इंजेक्शन दिये हैं। इसके साथ ही भोपाल स्थित दवा बाजार के एक व्यापारी को भी उन्होंने 100 इंजेक्शन सप्लाई किये हैं। इसके अलावा, जबलपुर और ग्वालियर में भी इन्होंने ये नकली इंजेक्शनों की सप्लाई दी है, जिसकी पड़ताल अभी की जा रही है।
MP में अब तक धराए 17 आरोपी, रासुका के तहत होगी कार्रवाई
पुलिस पूछताछ में ये भी पता चला है कि, आरोपियों ने मध्य प्रदेश के इन व्यापारियों को 17 हजार रुपये की दर से ये इंजेक्शन बेचे थे, जिन्हें ये मरीज के परिजन की आर्थिक स्थिति और मरीज को बचाने की उनकी फिक्र के अनुरूप बेचते थे। मामले को लेकर इंदौर एसपी आशुतोष बागरी ने बताया कि, मध्य प्रदेश में अब तक नकली रेमडेसिविर की कालाबाजारी में लिप्त 17 आरोपियों को गिरफ्तार किया जा चुका है। इनमें से 12 आरोपियों के खिलाफ रासुका के तहत कार्रवाई करने का प्रस्ताव कलेक्टर काे दिया जा चुका है। शेष आरोपियों के प्रस्ताव भी जल्द भेजे जाएंगे। नकली दवा या कालाबाजारी करने वालों पर पुलिस सख्त कारर्वाई की जाएगी।
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80 रुपए की लागत, बाजार में 35 हजार में बेचते
सुनील ने बताया कि कौशल व पुनीत नकली इंजेक्शन तैयार कर 6 हजार में दलाल को बेचते थे। दलाल असीम भाले इसे आरोपी प्रवीण उर्फ सिद्धार्थ को 8 हजार 500, प्रवीण धीरज को 16 हजार 500, धीरज 24 हजार में दिनेश चौधरी को और दिनेश ने सोशल मीडिया से लोगों को 35 से 40 हजार में इंजेक्शन बेचे। इसमें प्रिया नामक युवती भी सक्रिय थी।
इसलिये पकड़ा गई नकली रेमडेसिविर बेचने वाली ये गैंग
पकड़ाए गए आरोपियों में से एक सुनील ने पुलिस पूछताछ में बताया कि, वो इतनी सफाई से अपने काम को अंजाम दे रहे थे कि, किसी को भी आसानी से शक होना संभव नहीं था। लेकिन, उनकी एक गलती, जिसे उन्होंने नजरअंदाज कर दिया था, उसी की वजह से वो धरा गए हैं। सुनिल के मुताबिक, सबसे पहले हमने असली की हूबहू कॉपी करने के लिये एक असली इंजेक्शम खरीदा। उसपर लगी चिट को हूबहू प्रिंट करा दिया। यही नहीं इसी प्रिंट से करीब एक लाख इंजेक्शन बनाकर बाजार में सप्लाई भी कर दिये। बाद में उन्हें ये अहसास आ कि, जिस इंजेक्शन की चिट को कॉपी कर एक लाख प्रतियां निकाली गईं और उसे नकली इंजेक्शन पर चिपका कर सप्लाई भी कर दी गई, तो उसपर एक ही बैच नंबर (246039 ए) चला गया। क्योंकि, कॉपी के दौरान हर रेपर का बैच नंबर बदलपाना आसान नहीं था। इसलिये बाजार से इंजेक्शन वापस मंगाने र उन सभी पर दौबारा से अलग अलग बैच नंबर चिपकाना काफी जटिल कार्य हो जाता, इसलिये अपनी इस गंभीर गलती को नजर अंदाज कर दिया। हालांकि, इस बार जो स्लॉट तैयार किया था। उसके हर रैपर को बारीकी से अलग बैच नंबर दिया था। ताकि, फंसने का कोई कारण न हो। लेकिन, पता नहीं था कि, नजरअंदाज की गई पिछली गलती अब जाकर भारी पड़ेगी।
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इसलिये नजरअंदाज कर दी थी अपनी गलती
बता दें कि, पुलिस को इन एक ही बैच नंबर वाले रेमडेसिविर इंजेक्शन के संबंध में जानकारी लगते ही इसकी गोपनीय तौर पर पड़ताल शुरु की गई। कुछ इंजेक्शन विजय नगर पुलिस के कांस्टेबल भरत बड़े ने ग्राहक बनकर खरीदे, तो पता चला कि, सभी इंजेक्शनों में एक ही बैच नंबर लिखा था। हालांकि, अस्पतालों में चिकित्सक द्वारा लिखे जाने के बाद मरीज का परिजन अकसर इस इतनी जल्दी में लाता है कि, इसके बैच नंबर पर ध्यान भी नहीं देता। ससे बड़ा बात तो ये भी है कि, इस एक इंजेक्शन को ही इतनी कीमत में बेचा जाता था कि, 99 फीसदी लोग एक बार में एक इंजेक्शन ही खरीद पाते थे, जिसके चलते इनका भांडाफोड़ हो पाना इतना आसान नहीं था। पुलिस पूछताछ में आारोपियों ने कबूल किया है कि, उन्होंने अब तक मुंबई को सेट्रल प्वाइंट बनाकर मुख्य रूप से मध्य प्रदेश के अलावा दिल्ली, महाराष्ट्र, चेन्नई और राजस्थान में इस नकली इंजेक्शन की सप्लाई दी है। लेकिन, इन राज्यों के व्यापारी इन्हें देशभर के लगभग सभी राज्यों में बेच चुके हैं।
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