बुरहानपुर निवासी अशोक सेन हत्या के एक मामले में जेल में बंद है। उसके अनुसार वह मजदूरी के लिए यहां आया था। मजदूरी के रुपयों को लेकर विवाद हुआ और उसके हाथों हत्या हो गई। मामले में सजा हुई। जब वह जेल पहुंचा तो उसे सिर्फ अक्षर ज्ञान था। जैसे-तैसे अपना नाम लिख पाता था। जेल अफसरों की काउंसलिंग के बाद मन में पढऩे-लिखने की इच्छा जागी। आज वह फर्राटेदार अंग्रेजी बोल लेता है। पढ़ाई के दौरान उसे लगा कि कई अन्य कैदी ऐसे हैं, जो अपना नाम तक नहीं लिख पाते। इस पर उसने ठान लिया और ऐसे कैदियों को पढ़ाने में लगा हुआ है।
सेंट्रल जेल में राकेश पिता पूनाजी 2007 से सजा काट रहा है। जेल अफसरों के मुताबिक राकेश जब आया, तब पढ़ाई-लिखाई कर रहा था। परिवार में किसी बात पर विवाद हुआ और उसके हाथों रिश्तेदार की मौत हो गई। हत्या का केस चला और सजा हो गई। पढ़ाई अधूरी छूट गई। जेल में आने के बाद कुछ समय वह खाली बैठा रहा। बाद में अहसास हुआ कि पढ़ाई जारी रख कर वह कुछ कर सकता है। उसने जेल में रहते हुए ग्रेजुएशन किया। दो अलग-अलग विषयों में एमकॉम कर लिया। इसके साथ ही वह जेल में कैदियों को पढ़ाने में लग गया। वह कैदियों को न सिर्फ साक्षर कर रहा है, बल्कि आगे की पढ़ाई कर अपने कामकाज में महारत हासिल करने के लिए भी प्रेरित करता है।