मंदिर का निर्माण इंदौर के महाराजा शिवाजीराव होलकर ने कराया – इस मंदिर में देवी के नौ स्वरूप विद्यमान हैं। तंत्र-मंत्र, सिद्धि के लिए इस मंदिर की खास पहचान रही है। किसी जमाने में आसपास काले हिरणों का जंगल था पर अब जंगल भी सिमट गया है और काले हिरण भी कम बचे हैं. पूर्व में माता चबूतरे पर विराजित थीं. बाद में सन 1760 में इंदौर के महाराजा शिवाजीराव होलकर ने मंदिर का निर्माण कराया.
इस मंदिर की विशेषता है कि यहां संतान के इच्छुक भक्त ज्यादा आते हैं.यही कारण है कि विवाह के बाद यहां प्रदेश ही नहीं बल्कि देश भर से नवयुगल माता के दर्शन और पूजन के लिए आते हैं.बिजासन माता को भाग्य कारक और पुत्रदायिनी मां माना जाता है. इसके चलते पुत्र की कामना लिए दूर—दूर से भक्त यहां आते हैं.
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बताया जाता है कि आल्हा-उदल ने मांडू के राजा को हराने के लिए माता से मन्नत मांगी थी. मंदिर की वास्तुकला बहुत साधारण है. साधारण मिट्टी, पत्थर के चबूतरे पर विराजमान माता के नौ स्वरूपों के लिए तत्कालीन होलकर शासक ने यहां मराठा शैली में मंदिर का निर्माण कराया था. हालांकि बाद में कई बार विकास कार्य हुए.