ऐसी मान्यता है कि यदि किसी के संतान नहीं है और यहां मंदिर में यदि सच्चे मन से मन्नत मांगी जाती है तो संतान की प्राप्ति होती है। मंदिर के सामने ही पालना लगा है। ऐसा कहा जाता है कि यदि पति-पत्नी आकर यहां पालना झूलाते हैं तो अगले एक या दो वर्ष में संतान की प्राप्ति होती है। संतान प्राप्ति के बाद यहां आकर पति-पत्नी पालना भी भेंट करते हैं।
मंदिर के पास ही नदी हैं। जहां भक्तगण पहले नदी में नहाकर मंदिर में दर्शन के लिए जाते हैं। मंदिर में भक्तगण नींम की पत्ती भी बांधते हैं। ऐसे माना जाता है कि इससे कुष्ठ रोग कभी नहीं होता। मंदिर में बीस रुपए का शुल्क देकर विशेष दर्शन की सुविधा भी उपलब्ध है। देवी येल्लम्मा राजा रेणुका की पुत्री थीं। उनका विवाह जमदग्नि से हुआ था। रेणुका के पांच पुत्र थे। जमदग्नि बहुत ही क्रोधी व्यक्ति थे। उन्होंने भगवान की तपस्या करके सर्वोच्च शक्तियां प्राप्त की थीं। जमगग्नि की माता का नाम सत्यमा था। उनके नाम पर यह मंदिर है। सत्यमा देवी मंदिर से कुछ ही दूरी पर येल्लम्मा देवी यानी रेणुका देवी का मंदिर बना है।
सौंदत्ती निवासी राजस्थान के मायलावास मूल के बाबूसिंह राजपुरोहित कहते हैं, कर्नाटक के विभिन्न जिलों के साथ ही आसपास के प्रदेशों से रोजाना सैकड़ों भक्त यहां दर्शन के लिए आते हैं। भक्तों में मां के प्रति अगाध आस्था एवं श्रद्धा है। भक्तों के बीच माता का भारी परचा है। सच्चे मन से मां से मांगी गई हर मनोकामना पूरी होती है। यही वजह है कि दूर-दराज इलाकों से भक्तगण माता के दर्शन के लिए पहुंचते हैं।
मंदिर के व्यवस्थापक किरणसिंह राजपूत कहते हैं, मेरे दादा यहां मंदिर की देखरेख करते थे। मैं तीसरी पीढ़ी से हूं। मंदिर के प्रति भक्तों की अपार आस्था है। रोजाना चार से पांच पालना मंदिर में भेंट करने के लिए भक्तगण आते हैं। लकड़ी के बने पालने अधिक भेंट किए जाते हैं। महीने में पांच से छह स्टील के पालने चढ़ाए जाते हैं। महीने में एक-दो बार चांदी के पालने भी चढ़ाए जाते हैं। तीन साल पहले सोने का पालना चढ़ाया गया था।