चौरा निवासी लाबूराम विश्नोई ने कहा, वर्ष 1730 में पर्यावरण की रक्षा के लिए राष्ट्रीय पर्यावरण दिवस के रूप खेजड़ली आंदोलन शुरू हुआ था। वर्ष 1978 से खेजड़ली दिवस मनाया जा रहा हैं। खेजड़ली में विश्व का एकमात्र वृक्ष मेला लगता है। खेजड़ली स्थान बिश्नोई समाज का पवित्र स्थल है। तत्कालीन महाराजा अभयसिंह ने अपने मंत्री गिरधारी सिंह को खेजड़ी के वृक्षों के लिए आदेश दिया था। तब खेजड़ली गांव में वृक्ष काटने प्रारंभ किए। तब सबसे पहले अमृता देवी विश्नोई पेड़ से चिपक कर शहीद हो गई। भारत सरकार ने भी अमृता देवी के बलिदान को मान्यता देते हुए अमृता देवी विश्नोई पर्यावरण संरक्षण पुरस्कार की स्थापना की है।
रामजी का गोल निवासी नैनाराम विश्नोई ने कहा, विश्नोई समाज सदैव प्रकृति प्रेमी और पर्यावरण संरक्षण के प्रति समर्पण के लिए जाना जाता है। विश्नोई समाज अहिंसा के सिद्धांत पर विश्वास करता है। वे किसी भी जीव को नुकसान नहीं पहुंचाते हैं, चाहे वह कितना भी छोटा क्यों न हो। विश्नोई समाज पेड़ों की रक्षा करने में सदैव आगे रहता है। सादगी में विश्वास करता है। पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। विश्नोई समाज के लोग पेड़-पौधे और जीव-जन्तुओं की रक्षा के लिए अपने प्राण तक न्यौछावर कर देते हैं।
चौरा निवासी दीपाराम साहू ने कहा, केन्द्र सरकार को चाहिए कि वह प्रकृति को बचाने के लिए कठोर कानून बनाएं। इन कानूनों का उल्लंघन करने वालों के लिए कड़ी सजा का प्रवाधान किया जाना चाहिए। हमें अधिकाधिक पौधे लगाने की दिशा में आगे बढऩा चाहिए। हम अपने जन्मदिन पर एक पौधा जरूर लगाएं। विश्नोई समाज सदैव वन्यजीव एवं प्रकृति प्रेमी रहा है। पर्यावरण की रक्षा के लिए विश्नोई समाज के लोग सदैव अग्रणी रहे हैं।
चार्टर्ड अकाउन्टेन्ट विक्रम विश्नोई ने कहा, पेड़-पौधों का हमारे जीवन में बहुत महत्व है। पेड़ हैं तो प्रकृति सुरक्षित है। एक पेड़ को तैयार होने में कई साल लगते हैं। इसलिए पेड़ को काटे नहीं। नए पौधे लगाएं और उन्हें विकसित करने का संकल्प लें। पर्यावरण की रक्षा के लिए हम सभी को आगे आना चाहिए।
मालवाड़ा निवासी शैतानाराम पंवार ने कहा, गुरु जांभोजी ने बिश्नोई संप्रदाय को अपनाने वाले लोगों को 29 नियम की आचार संहिता प्रदान की जिसका पालन करना प्रत्येक बिश्नोई के लिए अनिवार्य है। गुरु जांभोजी के 29 नियमों में विश्व कल्याण की भावना निहित है। गुरु जंभेश्वर ने गोपालन किया। वे हरे वृक्षों को काटने एवं जीवों की हत्या को पाप मानते थे। वे हमेशा पेड़-पौधों, वन एवं वन्य जीवों के रक्षा करने का संदेश देते थे। विश्नोई संप्रदाय में खेजड़ी को पवित्र पेड़ माना जाता है। जहां-जहां विश्नोई समाज बसे है। वहां जानवरों की रक्षा के लिए वह अपनी जान तक दे देते है।