अतुरालिये रत्ना ने श्रीलंका सरकार से उन्हें उनके पद से हटाने की मांग की थी। जब उनकी मांग पर अम्ल नहीं किया गया तब वे आमरण अनशन पर बैठ गए। बता दें कि बौद्ध भिक्षु रत्ना ने केवल उन्हीं तीन मुस्लिम अधिकारियों के इस्तीफे की मांग की थी। लेकिन 8 मंत्रियों ने एकजुटता का परिचय देते हुए साथ में इस्तीफा दे दिया। श्रीलंका के शहरी विकास, जल आपूर्ति और पेयजल मंत्री रउफ हकीम का कहना था कि, “श्रीलंका में बढ़ रहे तनाव को देखते हुए उन्होंने इस्तीफा दिया है। साथ ही उन्होंने सरकार से निष्पक्ष जांच करने की मांग की है ताकि सभी आरोप मुक्त हो सकें।
श्रीलंका सरकार में खुद एक सांसद अतुरालिये रत्ना राष्ट्रपति मैत्रीपाल सिरिसेना ( Maithripala Sirisena ) के सलाहकार भी हैं। साथ ही वे दक्षिणपंथी बौद्ध राष्ट्रवादी पार्टी जकीता हेला उरुमाया के संस्थापक सदस्य भी रहे हैं। जब यह पार्टी बनी थी तो इसका एजेंडा था LTTE का जड़ से सफाया और धर्मांतरण को रोकना। रत्ना के अनशन के दौरान उनके समर्थन में हजारों लोग उतर आए। इसके साथ ही उनके समर्थन में कोलंबो कैथोलिक चर्च के प्रमुख भी वहां पहुंच गए। रत्ना के अनशन के बाद आस-पास के इलाके में कई हिंसक घटनाएं सामने आने लगीं।
नेताओं ने जब इस्तीफे दिए तभी जाकर अतुरालिये रत्ना ने अपना अनशन खत्म किया। इसी के साथ मुस्लिम मंत्रियों के इस्तीफे की देशभर में आलोचना हो रही है। वरिष्ठ राजनेताओं ने बौद्ध भिक्षु की मांग को सांप्रदायिक करार देते हुए चिंता भी जाहिर की। वित्त मंत्री ने कहा, “हमारे प्यारे देश के लिए यह एक शर्मनाक दिन है।”