यह थैरेपी जोड़ों का दर्द, त्वचा, कान, नाक व गले संबंधी रोग, डायबिटीज से पैरों में हुए जख्म, पाचन क्रिया व रक्तसंचार में गड़बड़ी, कफ व गंजेपन के लिए अत्यन्त उपयोगी है।
शरीर के जिस हिस्से में यह थैरेपी करनी होती है वहां जोंक को छोड़ दिया जाता है। दूषित रक्त चूसने के बाद जोंक त्वचा से खुद ही अलग हो जाती है। इसमें मरीज को दर्द नहीं होता बल्कि जोंक के रैंगने का अहसास होता है।
इस थैरेपी में इलाज एक से डेढ़ महीने तक चलता है जिसमें हफ्ते में 1-3 बार डॉक्टर को दिखाना पड़ता है। लंबी बीमारी में 3-4 माह तक इलाज चलता है। इस पद्धति में उपचार के बाद अक्सर रोगी को शरीर में खुजली महसूस होने लगती है जो 3-4 दिन में खुद ही ठीक हो जाती है।