सावरकर हमेशा विवादों में घिरे रहते थे। वहीं वो हिंदू धर्म के कट्टर समर्थक और जाति व्यवस्था के विरोधी थे। यही नहीं उन्होंने गाय की पूजा को भी नकार दिया और गौ पूजन को अंधविश्वास बता दिया था। सावरकर अंग्रेजों का तो विरोध करते ही थे, इसके साथ ही वो विदेशों से आए सामनों का भी विरोध करते थे। 1905 में दशहरे ( Dussehra ) के दिन विदेश से आई सभी वस्तुओं और कपड़ों को उन्होंने जलाना शुरु कर दिया था। उन्हें 1911 में 50 साल के लिए कालापानी की सजा सुनाई गई थी। हालांकि, मांफी मांगने के बाद और इंडियन नेशनल कांग्रेस द्व्रारा दबाव बनाने के बाद उन्हें सेलुलर जेल में शिफ्ट किया गया। साथ ही जल्द ही उनकी ये सजा भी माफ कर दी गई थी।
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कहा जाता है कि सावरकर की महात्मा गांधी ( Mahatma Gandhi ) से नहीं बनती थी। यही नहीं उन्होंने महात्मा गांधी के ‘भारत छोड़ों’ आंदोलन का विरोध भी किया था। 1857 में हुई क्रांति पर उन्होंने ‘द इंडियन वॉर ऑफ इंडिपेंडेंस’ किताब लिखी। इस किताब में उन्होंने गुर्रिला वार स्टाइल का उल्लेख किया। युद्ध की ये रणनीति उन्होंने लंदन में सीखी थी। हालांकि, इस किताब को ब्रिटिश एम्पायर ने छपने नहीं दिया था। लेकिन मैडम बिकाजी कामा ने इसे न सिर्फ छापा, बल्कि जर्मनी, नीदरलैंड और फ्रांस में इसकी कॉपियां बांटी।