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होशंगाबाद

अब हिंदी में भी पढ़ सकेंगे ताप्ती महिमा, इन मां-बेटी ने किया अनुवाद

लोगों की सुविधा को देखते हुए संस्कृत से हिंदी में किया अनुवाद

होशंगाबादMar 08, 2018 / 05:33 pm

sandeep nayak

tapti nadi ka udgam sthal or tapti mandir multai

tapti nadi ka udgam sthal or tapti mandir multai

मुलताई। मां ताप्ती के बारे में जानने की जिज्ञासा रखने वालों के लिए खुश-खबरी है। जी हां, दरअसल अब तक ताप्ती पुराण संस्कृत में होने के कारण कई बार लोगों को समझने में परेशानी का सामना करना पड़ता था। लेकिन अब उनको इस परेशानी से निजात मिल सकेगी।
मां-बेटी ने मिलकर किया हिंदी अनुवाद
मां ताप्ती पुराण संस्कृत में होने से आम व्यक्ति मां ताप्ती की महिमा को नही जान पा रहे थे ऐसे समय में नगर की एक मां बेटी की जोड़ी ने ताप्ती भक्तों की भावनाओं को समझते हुए इसे संस्कृत से हिन्दी में अनुवाद कर जन-जन तक पहुंचाने का बीड़ा उठाया। मां-बेटी द्वारा किए गए प्रयास से जहां मां ताप्ती पुराण सरल एवं रोचक हो गया वहीं मां ताप्ती की महिमा से आम व्यक्ति भी लाभान्वित हुआ। ताप्ती महिमा को हिंदी में रूपांतरण करने के बाद इसको प्रकाशित भी किया।

ताप्ती की महिमा के प्रचारक के रूप में पहचान
मुलताई निवासी कलावती मान्धाता एवं श्रीमती रामकुंवर खेरे मां ताप्ती की महिमा के प्रचारक के रूप में जाना जाता है। लोगों की इस समस्या को देखते हुए कलावती मान्धाता ने ताप्ती पुराण को गुजराती एवं संस्कृत भाषा से हिंदी में अनुवाद किया, लेकिन यह अनुवाद रोचक नहीं था, तब श्रीमती रामकुंवर खेरे ने जो संस्कृत से एमए डिग्री धारक थी, उनके पुत्र गगनदीप खेरे ने बताया कि ताप्ती नदी जहां-जहां से होकर गुजरात पहुंची है, वहां-वहां इस पुराण को पहुंचाया जा रहा है।
कुछ ऐसी ही ताप्ती की महिमा
सूर्यपुत्री मां ताप्ती भारत की पश्चिम दिशा में बहने वाली प्रमुख दो नदियों में से एक है। यह नाम ताप अर्थात् उष्ण गर्मी से उत्पन्न हुआ है। वैसे भी ताप्ती ताप – पाप – श्राप और त्रास को हरने वाली आदीगंगा कही जाती है। स्वंय भगवान सूर्यनारायण ने स्वंय के ताप को कम करने के लिए ताप्ती को धरती पर भेजा था। यह सतपुड़ा पठार पर स्थित मुलताई के तालाब से उत्पन्न हुई है लेकिन इसका मुख्य जलस्त्रोत मुलताई के उत्तर में 21 अंक्षाश 48 अक्षंाश पूर्व में 78 अंक्षाश एवं 48 अंक्षाश में स्थित 790 मीटर ऊँची पहाड़ी है जिसे प्राचीनकाल में ऋषिगिरी पर्वत कहा जाता था जो बाद में नारद टेकड़ी कहा जाने लगा। इस स्थान पर स्वंय ऋषि नारद ने घोर तपस्या की थी तभी तो उन्हे ताप्ती पुराण चोरी करने के बाद उत्पन्न कोढ़ से मुक्ति का मार्ग ताप्ती नदी नदी में स्नान का महत्व बताया गया था। मुलताई का नारद कुण्ड वही स्थान है जहां पर नारद को स्नान के बाद कोढ़ से मुक्ति मिली थी। ताप्ती नदी सतपुड़ा की पहाडिय़ों एवं चिखलदरा की घाटियों को चीरती हुई महाखडड में बहती है। 201 किलोमीटर अपने मुख्य जलस्त्रोत से बहने के बाद ताप्ती पूर्वी निमाड़ में पहँुचती है। पूर्वी निमाड़ में भी 48 किलोमीटर सकरी घाटियों का सीना चीरती ताप्ती 242 किलोमीटर का सकरा रास्ता खानदेश का तय करने के बाद 129 किलोमीटर पहाड़ी जंगली रास्तों से कच्छ क्षेत्र में प्रवेश करती है। लगभग 701 किलोमीटर लम्बी ताप्ती नदी में सैकड़ो ं कुण्ड एवं जल प्रताप के साथ डोह है जिसकी लम्बी खाट में बुनी जाने वाली रस्सी को डालने के बाद भी नापी नही जा सकी है। इस नदी पर यूँ तो आज तक कोई भी बांध स्थाई रूप से टिक नहीं सका है मुलताई के पास बना चन्दोरा बांध इस बात का पर्याप्त आधार है कि कम जलधारा के बाद भी वह उसे दो बार तहस नहस कर चुकी है। सूरत को बदसूरत करने वाली ताप्ती वैसे तो मात्र स्मरण मात्र से ही अपने भक्त पर मेहरबान हो जाती है लेकिन किसी ने उसके अस्तित्व को नकारने की कुचेष्टïा की तो वह फिर शनिदेव की बहन है कब किसकी साढ़े साती कर दे कहा नहीं जा सकता। ताप्ती नदी के किनारे अनेक सभ्यताओं ने जन्म लिया और वे विलुप्त हो गई। भले ही आज ताप्ती घाटी की सभ्यता के पर्याप्त सबूत न मिल पाये हो लेकिन ताप्ती के तपबल को आज भी कोई नकारने की हिम्मत नहीं कर सका है। पुराणों में लिखा है कि भगवान जटाशंकर भोलेनाथ की जटा से निकली भागीरथी गंगा मैया में सौ बार स्नान का, देवाधिदेव महादेव के नेत्रों से निकली एक बुन्द से जन्मी शिव पुत्री कही जाने वाली माँ नर्मदा के दर्शन का तथा माँ ताप्ती के नाम का एक समान पूण्य एवं लाभ है। वैसे तो जबसे से इस सृष्टिï का निमार्ण हुआ है तबसे मूर्ति पूजक हिन्दू समाज नदियों को देवियों के रूप में सदियों से पूजता चला आ रहा है। हमारे धार्मिक गंथों एवं वेद तथा पुराणो में भारत की पवित्र नदियों में ताप्ती एवं पूर्णा का भी उल्लेख मिलता है। सूर्य पुत्री ताप्ती अखंड भारत के केन्द्र बिन्दु कहे जाने वाले मध्यप्रदेश के बैतूल जिले के प्राचीन मुलतापी जो वर्तमान में मुलताई कहा जाता है। इस मुलताई नगर स्थित तालाब से निकल कर समीप के गौ मुख से एक सूक्ष्म धार के रूप में बहती हुई गुजरात राज्य के सूरत के पास अरब सागर में समाहित हो जाती है।

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