कहा जाता है कि सबसे पहले शिव जी ने नादिया गांव में अपना नादिया बैल छोडा था। जिससे भस्मासुर भ्रमित होकर उनको तलाशने के लिए यहां पहुंचा। इसके बाद भगवान शंकर चौरागढ़ पर्वत पर पहुंचे जहां। जहां चौरा बाबा पहले से भगवान की तपस्या में लीन थे। भगवान शिव ने चौराबाबा को दर्शन देकर अपना त्रिशूल उनके पास छोड़ दिया से चौराबाबा ने त्रिशूल की पूजा करना प्रारंभ कर दिया। इसके बाद शिवरात्रि पर यहां त्रिशूल चढ़ाने की परंपरा बन गई। कहा जाता है कि चौरागढ़ में त्रिशूल चढ़ाने से मनोकामना पूर्ण होती है। महाशिवरात्रि पर यहां हजारों की तादाद में त्रिशूल चढ़ाए जाते हैं।
यहां पर विश्वप्रसिद्ब महाशिवरात्रि मेला लगता है। १५४ साल से चल रहे इस मेले में महाराष्ट्र और विर्दभ के लोग प्रमुख रूप से पहुंचते हैं। कहते हैं पार्वती जी का मायका विर्दभ का था। इसलिए विर्दभ के लोग पार्वती जी को अपनी बहन एवं शंकर जी को अपना जीजा मानते हैं।
महादेव मंदिर पचमढ़ी से १0 किमी दूर पहाड़ी पर है पवित्र गुफा। यहां पर भगवान शंकर का प्राकृतिक शिवलिंग है। गुफा में साल भर प्राकृतिक स्रोतों से जल का अभिषेक किया जाता है। महादेव मंदिर से 3 किमी पैदल यात्रा कर १३ सौ सीढिय़ों से यहां तक का सफर तय होता है।
होशंगाबाद. गोलघाट स्थित कालेमहादेव धार्मिक नगरी होशंगाबाद की आस्था का केंद्र हैं। कहा जाता है कि सावन के महिने में एक बार प्रकृति भी महादेव का जलाभिषेक करती है। यहां पर महाशिवरात्रि आयोजन धूमधाम से मनाया जाता है। कालेमहादेव मंदिर में ५ सालों से उज्जैन की तर्ज पर शिवरात्रि महानवरात्र मनाया जा रहा है। इसके अलावा त्योहारों के अनुसार महादेव का श्रृंगार किया जाता है। साथ ही उज्जैन के मंदिर की तर्ज पर शहर के इस मंदिर का निर्माण भी किया जा रहा है। महाशिवरात्रि के नौ दिन पहले से तैयारियां शुरू हो जाती हैं। शिव और पार्वती के विवाह पर सभी भगवान को न्यौता दिया जाता है। उज्जैन महाकार को पीले चावल डालकर न्यौता दिया जाता है।
१८४० में इस मंदिर की नींव रखी गई थी। गोलघाट स्थित इस स्थान पर पहले एक चबूतरे पर शिवलिंग और नंदी महाराज की प्रतिमा हुआ करती थी। धीरे-धीरे इसे मंदिर का स्वरूप दिया गया। तीस साल पहले संतोष शर्मा ने महादेव की सेवा की।