किसानों तक ऐसे पहुंचता है नया बीज
अनुसंधान के बाद नए बीज को मप्र वैराइटल रिलीज कमेटी रिलीज करती है। इसके बाद भारत सरकार से नोटिफिकेशन होने पर अनुसंधान केंद्र के पास मौजूद बीज कृषि विश्वविद्यालय को दिए जाते हैं। विवि किसी भी सेंटर को बीज मल्टीप्लाई करके ब्रीडर शीड बनाते हैं। यह शीड विवि द्वारा बीज निगम को मिलता है, जिसे बीज निगम फाउंडेशन शीड बनाकर किसानों को उपलब्ध कराता है।
जबकि अभी तक के बीजों की उत्पादन क्षमता 50 से 55 प्रति हेक्टेयर और प्रोटीन प्रतिशत 12 से 13 रही है। इसके अलावा नए बीज की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी अधिक है। पवारखेड़ा कृषि अनुसंधान केंद्र ने पिछले 118 वर्षों में देश को गेहूं की 52 नई किस्मों के बीज दिए हैं। 400 एकड़ में फेले अनुसंधान केंद्र के 15 एकड़ में गेहूं पर रिसर्च की जाती है। कृषि अनुसंधान केंद्र पवारखेड़ा वैज्ञानिक, डॉ. केके मिश्रा ने बताया बीज को मप्र वैराइटल रिलीज कमेटी ने रिलीज कर दिया था। इसके बाद केंद्र सरकार ने भी नोटिफिकेशन कर दिया है। अगले साल से यह बीज किसानों को उपलब्ध होगा। यह बीज सर्वाधिक उत्पादन और प्रोटीन देने वाला है।
उच्चताप और रोग प्रतिरोधक बीज
वर्ष 1903 से अब तक गेंहू की स्टीवम (पिसी) व ड्यूरम (रवा) दोनों किसमें तैयार की हैं। सिंचित, असिंचित और दूरी से बोई जाने वाली प्रजातियां तैयार की हैं। यहां विकसित प्रजाति में गेरूआ और काड़ियां रोग नहीं पाया जाता। ये प्रजाति उच्च ताप सहनशील, रोग प्रतिरोधी व उच्च उत्पादन देने वाली हैं। वैज्ञानिकों ने 8 साल की रिसर्च के बाद गेहूं की एमपीओ 1255 वैरायटी तैयार की। इसकी विशेषता यह है कि यह पास्ता, चाउमीन व अन्य चायनीज व्यंजनों के लिए उपर्युक्त है।