वहीं शनि ढैय्या, साढ़ेसाती जैसे शब्द और भी भयभीत करने वाले हैं, लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं है। दरअसल ज्योतिष में शनि एक क्रूर या पापी ग्रह अवश्य है। लेकिन यह हमारे कर्मों के अनुसार ही हमें फल देता है।
पंडित सुनील शर्मा के अनुसार वैदिक ज्योतिष में शनि ग्रह का बड़ा महत्व है। हिन्दू ज्योतिष में शनि ग्रह को आयु, दुख, रोग, पीड़ा, विज्ञान, तकनीकी, लोहा, खनिज तेल, कर्मचारी, सेवक, जेल आदि का कारक माना जाता है। यह मकर और कुंभ राशि का स्वामी होता है। तुला राशि शनि की उच्च राशि है जबकि मेष इसकी नीच राशि मानी जाती है।
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शनि का गोचर एक राशि में ढ़ाई वर्ष तक रहता है। ज्योतिषीय भाषा में इसे शनि ढैय्या कहते हैं। नौ ग्रहों में शनि की गति सबसे मंद है। शनि की दशा साढ़े सात वर्ष की होती है जिसे शनि की साढ़े साती कहा जाता है।
यदि कोई व्यक्ति अच्छा कर्म करता है तो शनि के अच्छे फल उस व्यक्ति को प्राप्त होते हैं, जबकि बुरे कार्य करने वाले को शनि दंडित करते हैं। इसलिए तो इसे न्यायकर्ता कहा जाता है।
ज्योतिष में शनि ग्रह को भले एक क्रूर ग्रह माना जाता है परंतु यह पीड़ित होने पर ही जातकों को नकारात्मक फल देता है। यदि किसी व्यक्ति का शनि उच्च हो तो वह उसे रंक से राज बना सकता है। शनि तीनों लोकों का न्यायाधीश है। अतः यह व्यक्तियों को उनके कर्म के आधार पर फल प्रदान करता है। शनि पुष्य, अनुराधा और उत्तराभाद्रपद नक्षत्र का स्वामी होता है।
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शनि के इसी न्याय के नियम प्रभाव के चलते ही कोई शनि से डर कर उससे बचने की कोशिश करता है। ऐसे में लोग तरह तरह के उपाय भी अपनाते हैं। ज्योतिष के अनुसार शनि का रंग काला होता है। वहीं सप्ताह में इसका दिन शनिवार माना गया है। इस दिन के आराध्य देव शनिदेव होते हैं। वहीं इसका रत्न नीलम होता है।
शनि का वैदिक मंत्र
ॐ शं नो देवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये।
शं योरभि स्त्रवन्तु न:।।
शनि का तांत्रिक मंत्र
ॐ शं शनैश्चराय नमः।।
शनि का बीज मंत्र
ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः।।
पॉजीटिविटी बढ़ने के साथ ही कम होगा निगेटिविटी का असर…
पंडित शर्मा के अनुसार शनि ग्रह के लिए मुख्य रूप से दो तरह की अंगूठी होती है, एक नीलम की अंगूठी और दूसरी काले घोडे की नाल या नांव के लोहे से बनी अंगूठी। इनमें से जहां नीलम रत्न की अंगुठी बहुत ही एहतियात से पहनी होती है, वहीं दूसरी अंगुठी को पहनने के भी कुछ नियम हैं।
जहां तक नीलम की बात करें तो माना जाता है कि ये करीब 24 घंटे बाद से ही असर देना शुरू कर देती हैं, जो पॉजीटिव व निगेटिव दोनों तरह का हो सकता है। इसलिए इसे धारण करने से पहले किसी अच्छे जानकार की सलाह जरूरी मानी जाती है, वहीं यदि आप स्वयं भी इसे धारण करना चाहें तो कहा जाता है कि इसे पहनने से पहली रात को इसे सिराहने पर रखकर नींद लेनी चाहिए।
ऐसे में यदि उस रात आपको बुरे सपने आएं या यह रत्न आपके सिराहने से सरक जाए तो इसे धारण नहीं करना चाहिए, क्योंकि माना जाता है रत्न का ये (बुरे सपने आएं या यह रत्न आपके सिराहने से सरक जाना) संकेत करता है कि ये रत्न आपके लिए शुभ नहीं है। वहीं यदि ये आपको शानदार सपने दे, इसका अर्थ ये लगाया जाता है कि ये रत्न आपको फलित होगा।
जबकि दूसरी काले घोडे की नाल या नांव के लोहे से बनी अंगूठी के संबंध में मान्यता है कि ये शनि के मामले में एकाएक कोई निगेटिव प्रभाव नहीं देती, बल्कि ये तो केवल शनि के निगेटिव प्रभाव को रोकती है, जबकि शनि के ही पॉजीटिव प्रभाव को ये प्रभावित ही नहीं करती।
कुल मिलाकर यदि आप नीलम पहनने में सक्षम न हों या नीलम आपको फलित न हो, तो शनि दोष से बचने के लिए काले घोडे की नाल या नांव के लोहे से बनी अंगूठी सबसे उपयुक्त मानी जाती है। इसे शनि का सबसे आसान उपाय माना जाता है, जो पॉजीटिविटी बढ़ाता है साथ ही निगेटिविटी का असर भी कम करता है।
अंगुठी पहनने का तरीका…
जहां नीलम धारण करने से पहले तमाम मंत्रों के अलावा पूजा पाठ आदि के बारे में कहा जाता है, वहीं दूसरी ओर लोहे की बनी अंगुठी को आप किसी शनि का दान लेने वाले के दानपात्र में जहां शनिदेव विराजमान हो डालकर कुछ दक्षिणा देने के बाद इसे वापस लेकर पहन सकते हैं। लेकिन इन दोनों को ही शनिवार के दिन ही पहनने का नियम है।
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लोहे की अंगुठी में इतना जरूर नियम है कि ये कहीं से भी अलग न हो यानि इसके दो सिरे न हों, यदि हो भी तो ये आपस में चिपके हों अर्थत दोनरें के बीच में गेप न हो।
असली या नकली ऐसे पहचानें…
ये ध्यान रखें कि काले घोड़े या नांव की अंगुठी की कुछ खासियत होती है, जिसके चलते आप इसकी असलियत आसानी से पहचान सकते हैं। एक तो ऐसी अंगुठियों में हमेशा चमक बनी रहती है, दूसरा लोहे की होने के बावजूद इनमें कभी जंग नहीं लगता।
नीलम रत्न : रातों रात रंक को बना देता है राजा!
रत्न शास्त्र का सबसे चमत्कारिक और शक्तिशाली रत्न नीलम को माना जाता है। माना जाता है कि नीलम रत्न को धारण करना कोई आसान बात नहीं है। इस रत्न के बारे में कहा जाता है कि ये रत्न रातों रात रंक को राजा बना सकता है और अगर ये किसी को सूट ना करे तो उसे राजा से रंग भी बना सकता है।
नीलम : शनि हैं स्वामी ( Stone of Saturn )
नीलम रत्न का स्वामी शनि देव हैं। नीलम रत्न बाकी रत्नों से अलग होता है। इस रत्न को धारण करना आपकी कुंडली में शनि की स्थिति के आधार पर तय होता है क्योंकि इस रत्न को सिर्फ शनि को मजबूत करने के लिए पहना जाता है। कई बार नीलम रत्न धारणकर्ता को सूट भी नहीं करता है और ऐसे में ये अपने नकारात्मक प्रभाव देना शुरु कर देता है जोकि बहुत घातक होते हैं।
रत्न शास्त्र में नीलम और माणिक्य की वैज्ञानिक संरचना एक जैसी है। नीलम रत्न एल्युमीनियमऑक्साइड से बनता है जिसमें आयरन, टाइटेनियम, क्रोमियम, कॉपर और मैग्नीशियम होता है। माना जाता है कि नीलम कम से 2 रत्ती का जरूर धारण करना चाहिए। इससे कम कैरेट का नीलम रत्न तकरीबन प्रभावहीन रहता है।
: जन्मकुंडली में शनि के प्रभाव को अधिक मजबूत करने के लिए नीलम रत्न धारण किया जाता है।
: अगर आपको ऑफिस में दूसरे लोग अपनी उंगली पर नचाना चाहते हैं और आप पर हुकूम चलाते हैं तो नीलम रत्न पहनना चाहिए।
: वहीं जिन लोगों को अपनी मेहनत का फल नहीं मिल पा रहा है उनकी भी से समस्या नीलम रत्न दूर करता है।
: अगर प्रयासों में असफलता मिल रही है, सड़क दुर्घटनाएं बहुत होती हैं या शत्रु हावी रहते हैं तो नीलम रत्न जरूर धारण किया जा सकता है।
: मानसिक शांति के लिए भी नीलम रत्न पहना जाता है। राजनीति के क्षेत्र से जुड़े लोगों को भी ये रत्न लाभ देता है।
: नीलम रत्न धारण करने वाले व्यक्ति को धन-वैभव और मान-सम्मान की प्राप्ति होती है।
: बुरी नज़र से बचाने और आलस को दूर करने के लिए भी इस रत्न को पहनना चाहिए। ये मन में सकारात्मक भाव उत्पन्न करता है।
: जो लोग निर्णय नहीं ले पाते हैं या असमंजस में रहते हैं उन्हें भी नीलम रत्न लाभ पहुंचाता है।
: ऐसा जरूरी नहीं है कि नीलम रत्न हर किसी को सूट करें, अगर ये आपको सूट ना करे तो आप कंगाल भी हो सकते हैं।
: इसे पहनने के बाद अगर आपके साथ दुर्घटनाएं हो रही हैं तो आपको इस रत्न को उतार देना चाहिए।
: नीलम सूट ना करे तो इससे अनिद्रा और तनाव रहता है। परिवार में क्लेश का कारण बन सकता है।
: इस रत्न को पहनने के बाद करियर में उन्नति की जगह नुकसान हो रहा है तो आपको इस रत्न को उतार देना चाहिए।
शनि का रत्न होने के कारण नीलम को शनिवार के दिन धारण करना चाहिए। शनिवार के दिन गाय के दूध, शहद और गंगाजल के मिश्रण में इसे 15-20 मिनट के तक भिगोकर रखें। अब अगरबत्ती जलाएं और शनि देव के इस मंत्र का 11 बार जाप करें –ऊं शं शनैश्चराय नम:।। इसके बाद दाएं हाथ की बीच की उंगली में नीलम रत्न की अंगूठी को धारण कर लें। नीलम रत्न को सोना, चांदी या फिर अष्टधातु में धारण किया जाना चाहिए।