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स्पेशल रिपोर्ट : कोरोना वायरस के चलते दुनिया के 6 करोड़ लोग गरीबी रेखा से नीचे जियेंगे अपनी जिंदगी

इस साल वैश्विक एफडीआइ प्रवाह वर्ष 2020-21 के दौरान 30 से 40 फीसदी के बीच बने रहने की आशंका है।

Jun 08, 2020 / 09:49 am

Mohmad Imran

स्पेशल रिपोर्ट : कोरोना वायरस के चलते दुनिया के 6 करोड़ लोग गरीबी रेखा से नीचे जियेंगे अपनी जिंदगी

स्पेशल रिपोर्ट : कोरोना वायरस के चलते दुनिया के 6 करोड़ लोग गरीबी रेखा से नीचे जियेंगे अपनी जिंदगी

कोरोना वायरस (corona virus, covid-19, novel corona virus) ने वैश्विक अर्थव्यवस्था की कमर तोड़कर रख दी है। हाल ही अंतरराष्ट्रीय व्यापार और विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (यूएनसीटीएडी) के अनुसार इस साल वैश्विक एफडीआइ प्रवाह वर्ष 2020-21 के दौरान 30 से 40 फीसदी के बीच बने रहने की आशंका है। यूएनसीटीएडी का यह भी कहना है कि अगर एफडीआइ में यह गिरावट कुछ समय के लिए यूं ही बना रहा तो आने वाले महीनों में विकासशील देशों के लिए इसके गंभीर परिणाम होंगे। अब विश्व बैंक (world bank) के अध्यक्ष डेविड मालपास (david malpass) ने भी ऐसी ही आशंका जताई है। मालपास ने चेताया है कि इस महामारी (pandemic) के चलते करोड़ों लोगों की जिंदगी पर आर्थिक संकट गहरा सकता है। उन्होंने कहा कि अर्थव्यवस्था को होने वाला यह नुकसान एक दशक तक रहने की आशंका है। मई में मालपास ने चेतावनी दी थी कि कोरोना वायरस के प्रभाव के चलते लगभग 6 करोड़ लोग अत्याधिक गरीबी में जीवन बिताने को विवश होंगे।
स्पेशल रिपोर्ट : कोरोना वायरस के चलते दुनिया के 6 करोड़ लोग गरीबी रेखा से नीचे जियेंगे अपनी जिंदगी
कौन है अत्यधिक गरीब
विश्व बैंक के अनुसार अत्यधिक गरीब होने के दायरे में वे लोग आते हैं जिनके पास जीवन जीने के लिए एक दिन में 145 रुपए यानी करीब 1.90 डॉलर से भी कम हों। हाल ही दिए एक साक्षात्कार में मालपास ने कहा कि कोरोना वायरस से उत्पन्न आर्थिक संकट के कारण दुनिया में करीब 6 करोड़ से अधिक लोगों को प्रतिदिन 95 रुपए (करीब 1 पाउंड) से कम राशि में अपना जीवन जीने पर विवश होना पड़ेगा। मालपास ने कहा कि महामारी और उसके बाद हुए वैश्विक लॉकडाउन के चलते दुनियाभर के करोड़ों लोगों की जिंदगी हाशिए पर पहुंच गई हैं। वायरस का सबसे ज्यादा असर उन्हीं पर हो रहा है जो लोग बमुश्किल इसका सामना कर पा रहे हैं। गरीब देशों में लोग ना केवल बेरोजग़ार हो रहे हैं बल्कि असंगठित क्षेत्रों में भी काम नहीं मिल रहा जिसका असर एक दशक तक रह सकता है।

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