मिर्गी के कारण दौरे पड़ते हैं जो मस्तिष्क में शुरू होते हैं। यह एक न्यूरोलॉजिकल कंडीशन है जिससे दुनियाभर में करोड़ों बच्चे प्रभावित हैं। अकसर मिर्गी वाले वयस्कों को बचपन या किशोरावस्था में पहला दौरा पड़ता है। किशोरावस्था तक आते-आते बच्चों में मिर्गी के दौरे बढ़ने लगते हैं। लेकिन बच्चों की सही तरीके से देखभाल करके मिर्गी के दौरे की समस्या को कम किया जा सकता है। बच्चों में जन्म लेने के एक साल के दौरान मिर्गी के दौरे पड़ने की संभावना अधिक होती है। मिर्गी प्रत्येक बच्चे को अलग-अलग तरह से प्रभावित करता है। बच्चों में मिर्गी उनकी उम्र पर निर्भर करता है। इसके साथ ही दवा के माध्यम से भी मिर्गी के दौरे को आसानी से नियंत्रित किया जा सकता है।
बच्चों में मिर्गी के लक्षण उनकी उम्र और हालत पर डिपेंड करता है जानें बच्चों में मिर्गी के लक्षण हैं । 1. मांसपेशियों में ऐंठन
2. मांसपेशियों में दर्द होना
3. सांस लेने में तकलीफ होना
4. बोलने में परेशानी होना
5. स्किन कलर में बदलाव नजर आना
6. किसी भी बात को समझने में कठिनाई होना
7. किसी वस्तु को पहचानने में दिक्कत
8. भावनात्मक बदलाव
बच्चों में मिर्गी का दौरा पड़ने के अलग-अलग कारण हो सकते हैं सिर पर चोट लगना। जिन बच्चों के सिर में चोट लगी होती है उन्हें मिर्गी का दौरा पड़ने का जोखिम अधिक होता है। कुछ बच्चों में दिमाग या मस्तिष्क के आकार में बदलाव के कारण भी मिर्गी का दौरा पड़ सकता है। ऑटिज्म से ग्रसित बच्चों को मिर्गी का दौरा पड़ने का खतरा ज्यादा रहता है। ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर एक दिमागी बीमारी है। इसमें मरीज न तो अपनी बात ठीक से कह पाता है ना ही दूसरों की बात समझ पाता है। बच्चों में मस्तिष्क से जुड़ी समस्याएं बढ़ने पर भी मिर्गी का दौरा पड़ने का जोखिम अधिक रहता है।
2. बच्चे को प्रोटीन से भरपूर खाद्य पदार्थों का सेवन करवाएं। कम कार्बोहाइड्रेड वाली डाइट दें।
3. बच्चे के सिर को चोट लगने से बचाएं। उन्हें साइकिल चलाते समय हेलमेट पहनाएं।
4. बच्चों की नींद पूरी करवाएं। उन्हें सही समय पर सुलाएं और उठाएं।
5. बच्चों को मिर्गी से बचाने के लिए आपको उन्हें शोर-शराबे से भी दूर रखना चाहिए। क्योंकि शोर से भी मिर्गी का दौरा पड़ सकता है।
6. बच्चे को तनाव, टेंशन या डिप्रेशन से दूर रखें। तनाव भी बच्चों में मिर्गी के दौरे का जोखिम बढ़ा सकता है।