scriptPatrika Explainer: ब्लैक फंगस से लेकर ग्रीन फंगस तक हर छोटी से बड़ी बात | Patrika Explainer: Everything about Green Fungus, Black Fungus, White Fungus and Yellow Fungus | Patrika News
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Patrika Explainer: ब्लैक फंगस से लेकर ग्रीन फंगस तक हर छोटी से बड़ी बात

कोरोना वायरस ( coronavirus ) महामारी के बाद देश में ब्लैक फंगस ( Black Fungus ) ने कहर बरपाया और इसे महामारी घोषित किए जाने के बाद से वाइट फंगस ( White Fungus ), यलो फंगस के बाद अब ग्रीन फंगस का भी केस सामने आ चुका है। ऐसे में आप सभी को इनके बारे में अच्छी तरह से पता होना चाहिए।

Patrika Explainer: Everything about Green Fungus, Black Fungus, White Fungus and Yellow Fungus

Patrika Explainer: Everything about Green Fungus, Black Fungus, White Fungus and Yellow Fungus

नई दिल्ली। कोरोना वायरस महामारी ( coronavirus ) के दौरान अभी तक भारत तीन तरह के फंगल इंफेक्शन से निपट रहा था, जिनमें ब्लैक फंगस ( Black Fungus ), वाइट फंगस और यलो फंगस से पीड़ित मरीजों का इलाज शामिल था। हालांकि इस सप्ताह मध्य प्रदेश के इंदौर में एक 34 वर्षीय COVID-19 से ठीक हो चुके व्यक्ति में नए तरह के फंगल इंफेक्शन का पता चलने के बाद अब देश को ग्रीन फंगस ( Green Fungus ) की एक नई चुनौती का सामना करना पड़ रहा है।
एक वरिष्ठ चिकित्सक ने बताया कि पीड़ित व्यक्ति को इलाज के लिए एयर एंबुलेंस से मुंबई ले जाया गया। उस व्यक्ति के जानलेवा ब्लैक फंगस से संक्रमित होने के संदेह के बाद उसका टेस्ट किया गया, लेकिन उसके साइनस, फेफड़े और रक्त में ग्रीन फंगस (एस्परगिलोसिस) का संक्रमण पाया गया।
महामारी रोग अधिनियम के तहत भारत में ब्लैक फंगस यानी म्यूकोर्माइकोसिस ( mucormycosis black fungus ) को महामारी घोषित किया गया था। हालांकि, इसके बाद पटना में वाइट फंगस की खबरें आईं और बाद में उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद में यलो फंगस का मामला सामने आया। विशेषज्ञों के मुताबिक वाइट फंगस, ब्लैक फंगस से ज्यादा खतरनाक होता है क्योंकि इसका फेफड़ों और शरीर के अन्य अंगों पर तेजी से प्रभाव पड़ता है।
https://youtu.be/OQADFdo89WI
MUCORMYCETES और ASPERGILLUS के बीच अंतर

ब्लैक, वाइट और यलो फंगस म्यूकोर्माइसिटिस के कारण होते हैं, जो पहले से ही पर्यावरण में मौजूद हैं। सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (सीडीसी) के मुताबिक, “वे पूरे पर्यावरण में, विशेष रूप से मिट्टी में और सड़ने वाले कार्बनिक पदार्थों, जैसे पत्तियों, खाद के ढेर और जानवरों के गोबर के साथ मौजूद हैं। वे हवा की तुलना में मिट्टी में और सर्दियों या वसंत की तुलना में गर्मियों व पतझड़ में ज्यादा आम हैं।”
वहीं, ग्रीन फंगस मोल्ड एस्परगिलस के कारण होता है, जो घर के अंदर और बाहर दोनों जगह आम है। यह आमतौर पर पर्यावरण में मौजूद होता है और हो सकता है सड़ती हुई पत्तियों, खाद, पौधों, पेड़ों और अनाज की फसलों से आ जाए।
सीडीसी का कहना है कि म्यूकोर्माइसिटिस और एस्परगिलस दोनों ही ज्यादातर लोगों के लिए हानिकारक नहीं हैं, भले ही वे हर रोज फंगस के संपर्क में आते हैं, लेकिन यह कमजोर इम्यून सिस्टम वाले लोगों पर हमला कर सकता है और गंभीर संक्रमण का कारण बन सकता है।
जानिए इन चारों फंगस इंफेक्शन के बारे में:

https://youtu.be/_4BVCeLkjrc
ग्रीन फंगस ( Green Fungus )

यह एस्परगिलस के कारण होने वाला एक संक्रमण है, जो एक सामान्य प्रकार का फंगस है और घरों के अंदर और बाहर खुले में पाया जाता है। इस रोग का चिकित्सीय नाम एस्परगिलोसिस है। सीडीसी के अनुसार, कुछ एलर्जी फैलाने वाले ग्रीन फंगस के हमलों से संक्रमण नहीं हो सकता है और अन्य मामलों में यह फेफड़ों को प्रभावित कर सकता है।
आक्रामक एस्परगिलोसिस, जिसमें ग्रीन फंगस एक गंभीर संक्रमण का कारण बनता है, आमतौर पर फेफड़ों को प्रभावित करता है, लेकिन शरीर के अन्य भागों में भी फैल सकता है। फिर त्वचीय यानी त्वचा वाला एस्परगिलोसिस होता है, इस स्थिति में ग्रीन फंगस त्वचा में कोई चोट या छेद के माध्यम से शरीर में प्रवेश करता है। इसके अलावा फेफड़ों जैसे अन्य हिस्सों से भी इसके शरीर में कहीं और से त्वचा में फैलने के उदाहरण मिलत हैं।
किसे है इसका जोखिम

यों तो एस्परगिलस के संपर्क में रोज आना हमेशा से कोई समस्या नहीं रही है, लेकिन फिर भी यह गंभीर संक्रमण का कारण बन सकता है। ग्रीन फंगस के कारण होने वाले विभिन्न प्रकार के संक्रमण आमतौर पर उन लोगों को प्रभावित करते हुए देखे जाते हैं जिन्हें सिस्टिक फाइब्रोसिस या अस्थमा या तपेदिक जैसी फेफड़ों की बीमारी है। कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली वाले लोग – उदाहरण के लिए जिनका अंग प्रत्यारोपण हुआ है या कैंसर के लिए कीमोथेरेपी, या कॉर्टिकोस्टेरॉइड्स की उच्च खुराक लेने (जैसे कुछ कोरोना मरीज करते हैं), में भी इनवेसिव एस्परगिलोसिस होने का खतरा होता है। हालांकि, एस्परगिलोसिस लोगों के बीच या फेफड़ों से लोगों और जानवरों के बीच नहीं फैलता है।
ग्रीन फंगस के लक्षण

विभिन्न प्रकार के संक्रमण जो ग्रीन फंगस को ट्रिगर कर सकते हैं, उनके अलग-अलग लक्षण हो सकते हैं। उदाहरण के लिए, जब ग्रीन फंगस फेफड़ों में एलर्जिक रिएक्शन पैदा करता है (एलर्जिक ब्रोंकोपल्मोनरी एस्परगिलोसिस या एबीपीए), तो यह अस्थमा के समान लक्षण पैदा करता है जैसे घरघराहट, सांस की तकलीफ, खांसी और दुर्लभ मामलों में बुखार। जब एलर्जी साइनस पर हमला करती है, तो यह भरी हुई नाक, सिरदर्द और कोरोना के साथ एक सामान्य लक्षण में, सूंघने की क्षमता को कम कर सकती है।
फेफड़ों को प्रभावित करते वाला क्रोनिक पल्मोनरी एस्परगिलोसिस वजन घटाने, खांसी, खून की खांसी, थकान और सांस की तकलीफ का कारण बन सकता है। एस्परगिलोसिस के लक्षणों में बुखार, सीने में दर्द, खांसी, खून की खांसी, सांस की तकलीफ शामिल हो सकते हैं।
https://youtu.be/r5Aq4oYCpEs
ब्लैक फंगस ( Black Fungus)

म्यूकोर्माइकोसिस या ब्लैक फंगस मरीज के चेहरे, नाक, आंख और यहां तक कि मस्तिष्क को भी प्रभावित कर सकता है, जिससे आंखों की रोशनी भी जा सकती है। इस प्रकार का फंगस फेफड़ों में भी फैल सकता है। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के निदेशक रणदीप गुलेरिया के मुताबिक, ब्लैक फंगस ज्यादातर स्टेरॉयड के दुरुपयोग के कारण होता है।
किसे है जोखिम

यह पाया गया है कि मधुमेह वाले लोग, कोरोना मरीज और जो लोग कई दिनों से स्टेरॉयड का सेवन कर रहे हैं, उनमें ब्लैक फंगस से संक्रमित होने का अधिक खतरा होता है। कहा जाता है कि लंबे समय तक आईसीयू में रहने से भी ब्लैक फंगस का खतरा बढ़ सकता है।
ब्लैक फंगस के लक्षण

हाल के हफ्तों में यह पाया गया है कि जो लोग कोविड से ठीक हो रहे हैं उनमें ज्यादातर ब्लैक फंगस हो रहे हैं। इसके जल्दी पता लगने के कुछ सामान्य लक्षण हैं, जैसे कि नाक का रंग फीका पड़ना, धुंधला दिखना, चेहरे के एक तरफ दर्द, दांत दर्द, सीने में दर्द और सांस फूलना। कुछ मामलों में यह भी पाया गया है कि संक्रमित मरीजों के खून की खांसी भी हुई है। समय पर इलाज न मिलने पर यह जानलेवा भी हो सकता है।
https://youtu.be/eA5FM_2H6_A
वाइट फंगस ( White Fungus )

हाल के मामलों के मुताबिक वाइट फंगस, ब्लैक फंगस से ज्यादा खतरनाक पाया गया है। डॉक्टरों ने यह भी चेतावनी दी है कि अगर समय पर फंगस पर ध्यान नहीं दिया गया तो यह मौत का कारण बन सकता है। यह फेफड़ों को बुरी तरह प्रभावित करता है और मस्तिष्क, श्वसन तंत्र और पाचन तंत्र को नुकसान पहुंचा सकता है।
कौन है जोखिम में

वाइट फंगस ज्यादातर उन लोगों पर हमला करता है जिनकी प्रतिरोधक क्षमता कम होती है। साथ ही, फंगस से युक्त अस्वच्छ स्थान किसी के लिए भी इस संक्रमण को पकड़ने के लिए एक आदर्श वातावरण बनाते हैं। हालांकि यह फंगल संक्रमण, संक्रामक नहीं है, लेकिन संक्रमित व्यक्ति के आस-पास के लोग कम प्रतिरक्षा होने पर इससे सांस के जरिए घिर सकते हैं। मधुमेह और कैंसर के मरीजों और लंबे समय तक स्टेरॉयड का सेवन करने वालों को इसका खतरा अधिक होता है।
वाइट फंगस के लक्षण

वाइट फंगस के कुछ शुरुआती लक्षण कोरोना वायरस के लक्षणों से काफी मिलते-जुलते हैं। रोगी को छाती में दर्द, खांसी, सांस फूलना, सिरदर्द, शरीर में दर्द, शरीर के कुछ अंगों में संक्रमण या सूजन हो सकती है।
https://youtu.be/IgMx7EEc81E
यलो फंगस ( Yellow Fungus )

विशेषज्ञों के अनुसार, अब तक खोजे गए तीन प्रकार के फंगस में यलो फंगस सबसे घातक है। यह आमतौर पर सरीसृपों को प्रभावित करता है और अब इंसानों में इसका पहला मामला गाजियाबाद में सामने आया है। जबकि संक्रमण के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है, यह जानना जरूरी है कि इस तरह का संक्रमण अस्वच्छ स्थितियों के कारण शुरू होता है।
कौन है जोखिम में

जिन लोगों का परिवेश खराब होता है यानी आसपास गंदगी-अस्वच्छता हो, उन्हें यलो फंसग से संक्रमित होने का अधिक खतरा होता है। इसके अलावा, यह दूषित भोजन, स्टेरॉयड के अति प्रयोग, जीवाणुरोधी दवाओं और खराब ऑक्सीजन के उपयोग के कारण भी हो सकता है। सलाह दी गई है कि अपने आस-पास के वातावरण को साफ और आर्द्र मुक्त रखें, पुराने खाद्य पदार्थों और मल को जल्द से जल्द हटा दें ताकि बैक्टीरिया और फंगस न बढ़ें।
यलो फंगस के लक्षण

यलो फंगस आंतरिक रूप से शुरू होता है। इसके कुछ शुरुआती लक्षणों में मवाद का रिसाव, घावों का धीरे-धीरे ठीक होना, सुस्ती, भूख न लगना, वजन कम होना और धंसी हुई आंखें शामिल हैं। गंभीर मामलों में, यह अंग विफलता जैसे खतरनाक लक्षण भी दिखा सकता है। विशेषज्ञों ने सलाह दी है कि जैसे ही किसी व्यक्ति को शरीर में कोई संक्रमण या कोई अन्य शुरुआती लक्षण दिखाई दें तो तुरंत डॉक्टर से सलाह लें।
https://youtu.be/YajU4FAWcmE

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