2. गर्भावस्था के दौरान एचआईवी संक्रमण।
3. प्रसव के दौरान बच्चे का एचआईवी के संपर्क में आना।
4. स्तनपान (ब्रेस्टफीडिंग) करते समय।
5. एचआईवी युक्त ब्लड के संपर्क में आने से।
6. संक्रमित सुई, सिरिंज आदि के इस्तेमाल से।
2. बच्चों का विकास धीरे से होना।
3. बच्चों को रात में पसीना आना।
4. लगातार बुखार होना।
5. लगातार दस्त की समस्या।
6. लिम्फ नोड्स का बढना।
7. वजन कम होना।
8. स्किन पर लाल रंग के चकत्ते।
9. मुहं में छालों का होना।
10. फेफड़ों में इन्फेक्शन।
11. किडनी से जुड़ी समस्याएं
एचआईवी एड्स की समस्या का कोई भी स्थायी इलाज नहीं है। इस बीमारी का मेडिकल मैनेजमेंट के जरिए इलाज किया जाता है। सही ढंग से इस बीमारी का इलाज और प्रबंधन करने से आप इस बीमारी को कंट्रोल कर सकते हैं। बच्चों में एचआईवी एड्स की समस्या होने पर एंटीरेट्रोवाइरल थेरेपी का प्रयोग किया जाता है। इसके अलावा कुछ एचआईवी रोधी दवाएं भी इस बीमारी को रोकने में फायदेमंद मानी जाती हैं। बच्चों में एचआईवी से बचाव के लिए माता-पिता को इस बीमारी के प्रति सचेत रहना चाहिए। ज्यादातर बच्चों में यह समस्या माता-पिता से ही होती है इसलिए हर मां-बाप को इससे जुड़े जोखिम कारकों का ध्यान रखना चाहिए।