जेएन.1 वैरिएंट ओमिक्रॉन का ही उप-रूप है और इसे विश्व स्वास्थ्य संगठन ने तेज फैलाव के कारण ‘वेरिएंट ऑफ इंटरेस्ट’ (VOI) घोषित किया है। यह फिलहाल भारत समेत 41 से ज्यादा देशों में पाया गया है।
इस वैरिएंट में स्पाइक प्रोटीन में अतिरिक्त म्यूटेशन (L455S) होने के कारण इसे इम्यून एस्केप का गुण माना जा रहा था, जिससे यह पहले की वैक्सीन और संक्रमण से बनी रोग-प्रतिरोधक क्षमता को आसानी से धोखा दे सकता है।
लेकिन जर्मनी, फ्रांस और ब्रिटेन के वैज्ञानिकों ने एक नए शोध में पाया कि JN.1 का इम्यून एस्केप क्षमता पहले के अध्ययन में पाए गए वैरिएंट्स, खासकर BA.2.86, से ज्यादा नहीं है। इसका मतलब है कि तेजी से फैलाव के लिए इम्यून एस्केप शायद ही कोई खास कारण हो।
शोधकर्ताओं का मानना है कि बढ़ते मामलों के पीछे इम्यून एस्केप से इतर कोई कारण भी हो सकते हैं, जिन पर और शोध की जरूरत है। शोधकर्ताओं ने 39 स्वस्थ लोगों के ब्लड सैंपल का परीक्षण किया, जिन्हें वैक्सीन लगाई गई थी या पहले कोरोना हो चुका था। इन सैंपलों को सात अलग-अलग वैरिएंट्स के खिलाफ टेस्ट किया गया। इनमें से JN.1, BA.2.86, XBB.1.5 और BA.5 जैसे नए वैरिएंट्स भी शामिल थे।
शोधकर्ताओं ने पाया कि नए वैरिएंट्स के खिलाफ रोग-प्रतिरोधक क्षमता पहले के वैरिएंट्स की तुलना में कम होती है, लेकिन JN.1 और BA.2.86 के बीच इम्यून एस्केप क्षमता में कोई खास अंतर नहीं पाया गया।
इस शोध से पता चलता है कि JN.1 और BA.2.86 के तेजी से फैलाव के पीछे इम्यून एस्केप शायद ही कोई मुख्य कारण हो। वहीं, अन्य कारक भी हो सकते हैं जिन पर ध्यान देने की जरूरत है।
मुख्य बातें: JN.1 वैरिएंट तेजी से फैल रहा है, लेकिन इम्यून एस्केप शायद ही इसका मुख्य कारण हो।
JN.1 और BA.2.86 की इम्यून एस्केप क्षमता में ज्यादा अंतर नहीं पाया गया।
तेजी से फैलाव के लिए इम्यून एस्केप से इतर अन्य कारण भी हो सकते हैं, जिन पर शोध की जरूरत है।