ट्रॉमा विशेषकर रोड एक्सीडेंट में जितनी भी मौतें होती हैं, उनमें 60 फीसदी की जान शुरू के पहले घंटे में चली जाती है। इनमें से भी करीब 50-60 फीसदी की मौतें शुरू के 10 मिनट में सही इलाज न मिलने के कारण चली जाती है। ऐसे में जरूरी होता है कि कोई भी ट्रॉमा हो तो मरीज को तत्काल मदद दी जानी चाहिए।
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Understand trauma like this ऐसे समझें ट्रॉमा कोयह सामान्य बीमारी नहीं है। इसके लक्षण भी सामान्य नहीं होते हैं। यह स्थिति गहरे आघात, सामाजिक, मानसिक, शारीरिक, मनोवैज्ञानिक व भावनात्मक जैसे किसी भी रूप में हो सकती है। ट्रॉमा के कई कारण होते हैं। शारीरिक ट्रॉमा का मतलब है, शरीर को कोई भी क्षति पहुंचना। ये सडक़ दुर्घटना, आग, जलना, गिरना, हिंसा की घटनाएं, प्राकृतिक आपदाएं आदि चीजों से हो सकती है।
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how to avoid accident दुर्घटना से ऐसे बचें सडक़ दुर्घटनाओं के कारण होने वाली मृत्यु तथा शारीरिक विकलांगता की घटनाओं में कमी लाई जा सकती है- – सडक़ सुरक्षा के नियम पालन करें।
-गाड़ी चलाते समय सुरक्षा चिह्नों और ट्रैफिक सिग्नल का पालन करें।
-दोपहिया वाहन हमेशा हेलमेट पहनकर ही चलाएं।
– ड्राइविंग के समय मोबाइल फोन का इस्तेमाल न करें।
– लंबी यात्रा कर रहे हों तो नियमित अंतराल पर छोटे-छोटे ब्रेक लें।
– घर पर तथा गाड़ी में हमेशा फस्र्ट ऐड किट तैयार रखें।
– सीढिय़ों, बालकनी, छत व खिड़कियों को ध्यान में रखकर तैयारी करें।
– जहां बुजुर्ग रहते हों वहां रात में भी पर्याप्त रोशनी होनी चाहिए।
– घर के फर्श फिसलन वाले न हों।
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Road accident main reason सडक़ दुर्घटना प्रमुख कारण ट्रॉमा दो तरह का हो सकता है, रोड एक्सीडेंट व डोमेस्टिक ट्रॉमा। रोड पर होने वाली जितनी भी दुर्घटनाएं हैं वे रोड एक्सीडेंट में आती हैं, जबकि घर में गिरना, चोट लगना, बुजुर्गों के फिसलकर गिरना, आग से जलना, छत या पेड़ से गिरना आदि डोमेस्टिक एक्सीडेंट में आता है।
-सबसे पहले चिकित्सीय मदद के लिए एम्बुलेंस बुलाएं।
-फिर पीडि़त का नाम पुकारें और जानें कि होश में है या नहीं?
-अगर पीडि़त होश में है तो उसे पूछताछ कर परेशान न करें।
-अगर होश में नहीं है तो उसकी धडक़न की जांच करें।
-धडक़न बंद है तो सीपीआर देना तत्काल शुरू करें।
– थकान होने पर गाड़ी न चलाएं।
– नींद या नशे में ड्राइव न करें।
– यात्रा के लिए पर्याप्त समय तय करें। जल्दबाजी न करें।
– जोखिम वाले काम जैसे बिजली के तार जोडऩा, पेड़ पर चढऩा सुरक्षा उपकरण लें।
– बिल्डिंग वाले मजदूरों को भी सुरक्षा उपकरणों का इस्तेमाल करना चाहिए।
सीनियर प्रोफेसर आर्थोपेडिक्स एवं ट्रॉमा सेंटर इंचार्ज, एसएमएस मेडिकल कॉलेज, जयपुर डॉ. दिव्या गुप्ता,
प्रोफेसर, एनेस्थेसियोलॉजी, हिमालय इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज, देहरादून