ध्यान दें ये हार्मोन रिप्लेसमेंट थेरेपी से अलग है, जो स्तन कैंसर को और बढ़ा सकती है. सभी नहीं, लेकिन कुछ स्तन कैंसर (Breast cancer) की गांठों में हार्मोन रिसेप्टर्स होते हैं। यानी ये गांठें हार्मोन के प्रति संवेदनशील होती हैं। इन्हें हार्मोन-संवेदनशील स्तन कैंसर कहा जाता है। जब ये रिसेप्टर्स एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन से जुड़ते हैं, तो ये ट्यूमर को बढ़ने में मदद करते हैं.
हार्मोन थेरेपी (Hormone Therapy) एक आसानी से मिलने वाली टेबलेट के रूप में ली जाने वाली दवा है। यह इन रिसेप्टर्स को ब्लॉक कर देती है या हार्मोन बनने को रोक देती है। इससे कैंसर की गांठें छोटी होती हैं और बीमारी वापस आने या शरीर के दूसरे अंगों में फैलने का खतरा कम हो जाता है.
असल में ये “एंटी-हार्मोन” थेरेपी है
डॉक्टर गीता कदायाप्रथ, जो नई दिल्ली के अपोलो कैंसर सेंटर में स्तन कैंसर (Breast cancer) सर्जरी की सीनियर कंसल्टेंट हैं, का कहना है कि, “हालांकि इसे हार्मोनल थेरेपी कहा जाता है, असल में ये “एंटी-हार्मोन” थेरेपी है। इसका मकसद शरीर में एस्ट्रोजन का लेवल कम करना होता है ताकि ये शरीर में मौजूद ट्यूमर कोशिकाओं पर असर न कर सके।” ये थेरेपी हार्मोन-संवेदनशील ट्यूमर के इलाज का बहुत कारगर तरीका है। प्रे-मेनोपॉजल महिलाओं के लिए टैमोक्सीफेन दवा का इस्तेमाल किया जाता है। ये दवा एस्ट्रोजन हार्मोन को ट्यूमर कोशिकाओं से जुड़ने से रोकती है। वहीं, पोस्टमेनोपॉजल महिलाओं के लिए अरोमाटेज इनहिबिटर्स दवा का इस्तेमाल किया जाता है। ये दवा शरीर में एस्ट्रोजन बनने को रोकती है.
किस स्टेज के कैंसर में ये कारगर है?
हार्मोन थेरेपी (Hormone Therapy) का इस्तेमाल शुरुआती स्टेज (स्टेज 1 से 3) में बचाव के तौर पर भी किया जा सकता है और चौथी स्टेज में भी ये राहत दायक उपचार के रूप में दिया जा सकता है. डॉक्टर तसनीम भरमाल मुंबई के पुण्याश्लोक अहिल्यादेवी होल्कर हेड एंड नेक कैंसर इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया में मेडिकल ऑन्कोलॉजी की एसोसिएट कंसल्टेंट हैं। वो कहती हैं, ” ये अपने आप में इलाज तो नहीं कर सकतीं, लेकिन हार्मोन रिसेप्टर-पॉजिटिव स्तन कैंसर के इलाज में इनकी अहम भूमिका होती है।”
कौन ले सकता है ये थेरेपी?
डॉ. गीता का कहना है कि “उम्रदराज महिलाओं में, शुरुआती स्टेज के हार्मोन-संवेदनशील स्तन कैंसर (Breast cancer) के लिए, हार्मोनल ट्रीटमेंट को अकेले इस्तेमाल किया जा सकता है। इसका नतीजा कीमोथेरेपी लेने वालों के बराबर ही होता है। साथ ही, इससे कीमोथेरेपी के साइड इफेक्ट भी नहीं होते हैं। हालांकि, टैमोक्सीफेन से खून के थक्के जमने का खतरा बढ़ सकता है और यह गर्भाशय की परत को भी मोटा कर सकता है, जिससे दुर्लभ मामलों में गर्भाशय का कैंसर हो सकता है। वहीं, अरोमाटेज इनहिबिटर दवाओं से हड्डी और मांसपेशियों में दर्द हो सकता है और कभी-कभी फ्रैक्चर का खतरा भी बढ़ सकता है।”