नृत्य से दी कैंसर को मात
आनंदा कहती हैं कि नृत्य उनकी आत्मा में बसा है। जिसे करने से थकान नहीं
बल्कि सुकून और आराम मिलता है। नृत्य ही मेरा जीवन है। डॉ. आनंदा का मानना
है कि कैंसर रोगियों को सामान्य दिनचर्या अपनाने के लिए प्रेरित करना
चाहिए। अपनी कला को हथियार बनाकर कैंसर की जंग बहादुरी के साथ जीती जा सकती
है।
आनंदा कहती हैं कि नृत्य उनकी आत्मा में बसा है। जिसे करने से थकान नहीं
बल्कि सुकून और आराम मिलता है। नृत्य ही मेरा जीवन है। डॉ. आनंदा का मानना
है कि कैंसर रोगियों को सामान्य दिनचर्या अपनाने के लिए प्रेरित करना
चाहिए। अपनी कला को हथियार बनाकर कैंसर की जंग बहादुरी के साथ जीती जा सकती
है।
01 जुलाई 2008 का दिन था जब डॉक्टर की क्लीनिक में डॉ. आनंदा को ब्रेस्ट कैंसर होने का पता चला। नृत्य प्रस्तुति में नौरसों को मंच पर साकार चुकीं डॉ. आनंदा को पहली बार समझ आया कि वास्तव में डर क्या होता है। यह सोचकर कि अब वे दोबारा कभी डांस नहीं कर पाएंगी, आनंदा के आंसू बह पड़े। तब पति जयंत ने समझाया कि ये अंत नहीं है, छोटा सा विश्राम है, जिसके बाद तुम फिर से डांस कर सकोगी। डॉ. आनंदा ने भी फैसला कर लिया कि नृत्य को आत्मबल बनाकर वे कैंसर को मात देंगी।
विग लगाकर किया परफॉर्म
कीमोथैरेपी के कारण बाल झड़ जाने और चेहरे की रौनक चले जाने के बावजूद उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। भयंकर गर्मी में वे विग लगाकर नृत्य प्रस्तुतियां देती थीं। आनंदा कहती हैं कि नृत्य उनकी आत्मा में बसा है। जिसे करने से थकान नहीं बल्कि सुकून और आराम मिलता है। नृत्य ही मेरा जीवन है। डॉ. आनंदा का मानना है कि कैंसर रोगियों को सामान्य दिनचर्या अपनाने के लिए प्रेरित करना चाहिए। अपनी कला को हथियार बनाकर कैंसर की जंग बहादुरी के साथ जीती जा सकती है।
कीमो के दौरान भी प्रैक्टिस
सर्जरी के दो दिन बाद अस्पताल में ही डॉ. आनंदा लैपटॉप पर नृत्य संरचना डांस फेस्टिवल के लिए आमंत्रण पत्र का चयन और कलाकारों की यात्रा व ठहरने के इंतजाम करने में जुट गईं। अस्पताल से छुट्टी मिलते ही वे स्टूडियो जाकर रिहर्सल क्लासेज देने लगीं। इतना ही नहीं कीमोथैरेपी सेशन के बाद वे चार दिन आराम करतीं और पांचवें दिन से ही डांस प्रैक्टिस में लग जाती थीं।
ऐसे शुरू हुआ नृत्य का सफर
चार वर्षीय आनंदा जब अपनी मां के साथ मंदिर गईं तो वहां एक महिला ने उन्हें देखकर कहा कि बच्ची की आंखें बड़ी और खूबसूरत हैं, इसे तो नृत्यांगना बनना चाहिए। फिर क्या था, मां सुभाषिनी ने बेटी को भरतनाट्यम सीखने भेजना शुरू कर दिया। 11 साल की उम्र में ही आनंदा ने राष्ट्रीय स्तर की नृत्य प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक जीता। इसके बाद कलाक्षेत्र अकादमी से भरतनाट्यम में पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा किया। वे राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय मंचों पर नृत्य प्रस्तुतियों के माध्यम से पौराणिक कथाओं, लिंगभेद व फिलॉसफी को दर्शा चुकी हैं। नृत्यांगना और कोरियोग्राफर के अलावा वे देश-विदेश में मोटिवेशनल गुरु के रूप में भी पहचानी जाती हैं। वे हैदराबाद के नृत्य प्रशिक्षण केंद्र शंकरानंदा कलाक्षेत्र अकादमी की निदेशिका भी हैं।
पहले ही प्रयास में बनीं अफसर
चेन्नई में जन्मी आनंदा भरतनाट्यम और कुचिपुड़ी नृत्य के साथ ही वीणावादन और कर्नाटक संगीत में भी पारंगत हैं। कॉमर्स में ग्रेजुएशन और आर्कियोलॉजी व एनशिएंट इंडियन हिस्ट्री में मास्टर्स करने के बाद उन्होंने ओस्मानिया यूनिवर्सिटी से हिस्ट्री में ही एमफिल और टूरिज्म में पीएचडी की डिग्री हासिल की। कॉलेज जाने के दौरान उन्होंने अपने दोस्तों को सिविल सर्विसेज का फॉर्म भरते देखा। अपनी काबिलियत आजमाने के लिए उन्होंने भी इसकी परीक्षा दी। पहले ही
प्रयास में उनका चयन हो गया और इंडियन रेलवे टै्रफिक सर्विस में वे फस्र्ट लेडी ऑफिसर नियुक्त हुईं।
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