ध्र्रुपद के रचनाकर है तानसेन
तानसेन ने कई ध्रुपद की रचना भी की। तानसेन के पहले धु्रपद के मूल पद संस्कृत में थे। यानी, श्रेष्ठी वर्ग तक सीमित। आम आदमी उसमें रस तो ले सकता था, लेकिन उसे समझना आसान नहीं था। तानसेन ने इस खाई को पाट दिया। संस्कृत के धु्रपद को आम आदमी की भाषा, बृज में रच दिया।
” मियां मल्हार ” ने तानसेन को बनाया खास
बारिश और संगीत का संबंध पुराना है। रुमानी मौसम में सुरों के बादल सहज ही बरसने लगते हैं। राग मल्हार संगीत के सर्वप्रमुख रागों में से एक है, जिसे शास्त्रीय रूप से बारिश में गाया जाता है। तानसेन ने बारिश में जिस स्वरावली को गाया उसे मियां मल्हार के नाम से संगीत में अनूठा स्थान प्राप्त है।
दरबारी कान्ड़ा
दरबारी कान्ड़ा भारतीय शास्त्रीय संगीत में कई राग ऐसे हैं, जिनकी पहचान ही तानसेन से जुड़ी हुई है। कान्ड़ा भी उन्हीं में से एक है। तानसेन ने अकबर के दरबार में रात के समय इस राग को गाया था। तब से इसे रात का राग कहा जाता है और दरबार में गाया था इस वजह से इसका नाम दरबारी कान्ड़ा हो गया।
गुजरी टोड़ी
ध्रुपद के सृजन का श्रेय राजा मानसिंह को ही जाता है। उनकी रानी मृगनयनी भी, सुर साधिका थी। उनके संरक्षण में ही तानसेन की संगीत शिक्षा-दीक्षा शुरू हुई। रानी मृगनयनी के लिए गुजरी महल में तानसेन ने कई नए राग रचे, जिन्हें गुजरी टोड़ी के रूप में जाना जाता है।
” धु्रपद से ख्याल और ठुमरी”
तानसेन ने संगीत में कई प्रयोग किए। ख्याल और ठुमरी संगीत की अनूठी धरोहर हैं, जो अलग धारा का हिस्सा है। तानसेन ने ध्रुपद में ख्याल और ठुमरी शैली इजाद की, जो उनके अलावा किसी और की सृजनात्मकता से संभव नहीं था। ख्याल और ठुमरी के साथ ध्रुपद की आत्मा को बरकरार रखते हुए उन्होंने नई शैली विकसित की।