तानसेन संगीत समारोह से जुड़े हैं यह रोचक किस्से, इसलिए खास है तानसेन समारोह
“उपलब्धियां”
अकबर के नवरत्नों में स्थान
मियां की मल्हार | राग मल्हार संगीत के प्रमुख रागों में से एक है, जिसे शास्त्रीय रूप से बारिश में गाया जाता है। तानसेन ने बारिश के मौसम में जिस स्वरावली को गाया उसे मियां मल्हार के नाम से संगीत में अनूठा स्थान प्राप्त है। माना जाता है रुमानी मौसम में सुरों के बादल बरस जाते हैं। |
पहले ध्रुपद | तानसेन के पहले धु्रपद के मूल पद संस्कृत में थे। यानि, श्रेष्ठी वर्ग तक सीमित। आम आदमी उसमें रस तो ले सकता था, लेकिन उसे समझना आसान नहीं था। जाहिर है पदों को समझे बगैर संगीत का पूरा रस कैसे मिल सकता था। तानसेन ने इस खाई को पाट दिया। |
उन्होंने संस्कृत के धु्रपद को आम आदमी की भाषा, बृजभाषा में रच दिया। |
तानसेन समारोह 2019 : 95 वर्ष का हुआ तानसेन समारोह , 1924 में लिया था जन्म
राग रागनियां की रचना
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बघेलों के घर में रहते थे तानसेन
बेहट के बघेल परिवार ने तानसेन का उनके माता-पिता के निधन के बाद पालन पोषण किया। तानसेन बकरियां चराते थे और रोज बकरी का दूध झिलमिल नदी के किनारे बने शिव मंदिर पर चढाऩे जाते थे। एक बार वे भगवान शिव पर दूध चढ़ाना भूल गए, लेकिन जब शाम को खाना खाते समय उन्हें याद आया तो वे व्याकुल हो उठे और खाना छोड़कर दूध चढ़ाने के लिए मंदिर की ओर रवाना हो गए।
तान से शिव मंदिर हो गया था टेढ़ा
बालक तानसेन की इस भक्ति से भगवान शिव इतने प्रसन्न हुए कि उन्हें साक्षात दर्शन देते हुए उनसे संगीत सुनने की इच्छा प्रकट की। शिवजी के कहने पर तानसेन ने ऐसी तान छेड़ी कि शिव मंदिर ही टेढ़ा हो गया। यह झुका हुआ शिव मंदिर आज भी झिलमिल नदी के किनारे तानसेन की साधना स्थली का गवाह है।
वैष्णव भक्त थे तानसेन के गुरु स्वामी हरिदास
तानसेन के गुरु स्वामी हरिदास (1480-1575) भक्त कवि, शास्त्रीय संगीतकार तथा कृष्णोपासक सखी संप्रदाय के प्रवर्तक थे। इन्हें ललिता सखी का अवतार माना जाता है। वे वैष्णव भक्त थे तथा उच्च कोटि के संगीतज्ञ भी थे। वे प्राचीन शास्त्रीय संगीत के अद्भुत विद्वान थे। ‘केलिमालÓ में इनके सौ से अधिक पद संग्रहित हैं।