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ग्वालियर

Tansen Samaroh 2019 : 505 वर्ष पूर्व बेहट गांव में हुआ था तन्ना पाण्डे का जन्म जो तानसेन के नाम से जाने गए

Tansen Samaroh 2019 : मौहम्मद गौस की शरण में गए और उनकी दुआ से सन् 1506 में तन्ना उर्फ तनसुख उर्फ त्रिलोचन का जन्म हुआ, जो आगे चलकर तानसेन के नाम से विख्यात हुए।

ग्वालियरDec 17, 2019 / 06:19 pm

Gaurav Sen

ramtanu pandey miyan tansen life story

ramtanu pandey miyan tansen life story

tansen samaroh 2019 @ ग्वालियर

“गंगा-जमुनी तहज़ीब का संगम तानसेन समारोह”

परिचय तानसेन

पूरा नाम: रामतनु पांडे 
जन्म… सन् 1506 
मृत्यु… 6 मई 1589 
पिता का नाम: मकरंद पांडे 
जन्मस्थान: ग्राम बेहट, ग्वालियर 
तानसेन के गुरु: गुरु हरिदास 
आध्यात्मिक गुरु : हजरत मौहम्मद गौस 

गौस की दुआ से हुआ जन्म
ग्वालियर से लगभग 45 किमी दूर ग्राम बेहट देशभर में तानसेन की जन्मस्थली के लिए जाना जाता है। यहां मकरंद पांडे के घर तानसेन का जन्म का हुआ था। मकरंद पांडे के कई संताने हुईं, लेकिन कोई भी संतान नहीं बची। इससे निराश और व्यथित मकरंद पांडे सूफी संत मौहम्मद गौस की शरण में गए और उनकी दुआ से सन् 1506 में तन्ना उर्फ तनसुख उर्फ त्रिलोचन का जन्म हुआ, जो आगे चलकर तानसेन के नाम से विख्यात हुए।

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“उपलब्धियां”


अकबर के नवरत्नों में स्थान

मियां की मल्हारराग मल्हार संगीत के प्रमुख रागों में से एक है, जिसे शास्त्रीय रूप से बारिश में गाया जाता है। तानसेन ने बारिश के मौसम में जिस स्वरावली को गाया उसे मियां मल्हार के नाम से संगीत में अनूठा स्थान प्राप्त है। माना जाता है रुमानी मौसम में सुरों के बादल बरस जाते हैं।
  
पहले ध्रुपदतानसेन के पहले धु्रपद के मूल पद संस्कृत में थे। यानि, श्रेष्ठी वर्ग तक सीमित। आम आदमी उसमें रस तो ले सकता था, लेकिन उसे समझना आसान नहीं था। जाहिर है पदों को समझे बगैर संगीत का पूरा रस कैसे मिल सकता था। तानसेन ने इस खाई को पाट दिया।

 

उन्होंने संस्कृत के धु्रपद को आम आदमी की भाषा, बृजभाषा में रच दिया।

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राग रागनियां की रचना

दरबारी कान्हड़ाशास्त्रीय संगीत में कई राग ऐसे हैं, जिनकी पहचान ही तानसेन से जुड़ी है। कान्हड़ा भी उन्हीं में से एक है। तानसेन ने अकबर के दरबार में रात में इस राग को गाया था, तब से इसे रात का राग कहा जाता है और दरबार में गाया था इस वजह से इसका नाम दरबारी कान्हड़ा हो गया।
  
धु्रपद से ख्याल और ठुमरी:तानसेन ने ध्रुपद में ख्याल और ठुमरी शैली इजाद की, जो उनके अलावा किसी और की सृजनात्मकता से संभव नहीं था। ख्याल और ठुमरी के साथ ध्रुपद की आत्मा को बरकरार रखते हुए उन्होंने नई शैली विकसित की। संगीत में ऐसे अनगिनत प्रयोग तानसेन की देन हैं।
  
काव्य कृतियां:रागमाला, संगीतसार और गणेश …

बघेलों के घर में रहते थे तानसेन
बेहट के बघेल परिवार ने तानसेन का उनके माता-पिता के निधन के बाद पालन पोषण किया। तानसेन बकरियां चराते थे और रोज बकरी का दूध झिलमिल नदी के किनारे बने शिव मंदिर पर चढाऩे जाते थे। एक बार वे भगवान शिव पर दूध चढ़ाना भूल गए, लेकिन जब शाम को खाना खाते समय उन्हें याद आया तो वे व्याकुल हो उठे और खाना छोड़कर दूध चढ़ाने के लिए मंदिर की ओर रवाना हो गए।

तान से शिव मंदिर हो गया था टेढ़ा

बालक तानसेन की इस भक्ति से भगवान शिव इतने प्रसन्न हुए कि उन्हें साक्षात दर्शन देते हुए उनसे संगीत सुनने की इच्छा प्रकट की। शिवजी के कहने पर तानसेन ने ऐसी तान छेड़ी कि शिव मंदिर ही टेढ़ा हो गया। यह झुका हुआ शिव मंदिर आज भी झिलमिल नदी के किनारे तानसेन की साधना स्थली का गवाह है।

वैष्णव भक्त थे तानसेन के गुरु स्वामी हरिदास
तानसेन के गुरु स्वामी हरिदास (1480-1575) भक्त कवि, शास्त्रीय संगीतकार तथा कृष्णोपासक सखी संप्रदाय के प्रवर्तक थे। इन्हें ललिता सखी का अवतार माना जाता है। वे वैष्णव भक्त थे तथा उच्च कोटि के संगीतज्ञ भी थे। वे प्राचीन शास्त्रीय संगीत के अद्भुत विद्वान थे। ‘केलिमालÓ में इनके सौ से अधिक पद संग्रहित हैं।

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