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ग्वालियर

लगन और मेहनत से पत्थर पर खिलाए फूल, मुक्तिधाम की बदल डाली तस्वीर

एक मजदूरपेशा के जुनून और निस्वार्थ परिश्रम ने एक उजाड़ सी बंजर जमीन पर एक हजार से अधिक पेड़ों का हरा भरा जंगल खड़ा कर दिया है।

ग्वालियरMar 08, 2016 / 11:40 am

Shyamendra Parihar


रामानंद सोनी @ भिंड

एक मजदूरपेशा के जुनून और निस्वार्थ परिश्रम ने एक उजाड़ सी बंजर जमीन पर गंदी बस्ती क्षेत्र में बनाए गए मुक्तिधाम पर लगभग एक हजार से अधिक पेड़ों का हरा भरा जंगल खड़ा कर दिया है। ये हैं बैरागपुरा निवासी 60 वर्षीय वीरेन्द्र ताम्रकार।

जो बिना किसी आर्थिक लाभ और स्वार्थ के श्मशानघाट की इस हरियाली को बरकरार बनाए रखने, पेड़ों को पानी देने, उनकी निराई गुड़ाई और सुरक्षा-संरक्षण करने के लिए प्रतिदिन नियमित रूप से अपने घर से वहां आते हैं। वे अपनी देह को भी मेडिकल छात्रों के हितार्थ ग्वालियर के गजराराजा मेडिकल कॉलेज को दान कर चुके हैं।


स्वच्छता के कार्य से जुड़े अनुसूचित जाति के वाल्मीकि समुदाय के लोगों की बस्ती भवानीपुरा के गंदे नाले के किनारे स्थित नगर पालिका के इस मुक्तिधाम की हालत डेढ़ दशक पहले तक बहुत खराब थी। मुक्तिधाम की जमीन पर साफ सुथरी मिट्टी की जगह नाले की सफाई से निकलने वाले विभिन्न प्रकार के सॉलिड वेस्ट (कचरे) की तकरीबन 10 फीट मोटी परत जमा थी। आसपास किसी तरह का कोई पेड़ नहीं था।


मुक्तिधाम में आनेवाले लोगों को कड़ी धूप में बेहद परेशानियों के साथ अपने परिजनों का अंतिम संस्कार संपन्न करना पड़ता था। वीरेन्द्र ताम्रकार जब यहां पहली बार एक अंत्येष्टि में शामिल होने आए, तो उन्हें इस सबसे बड़ी तकलीफ हुई और उन्होंने तय कर लिया कि वे यहां हरियाली उगाएंगे।

पांच साल की मेहनत में तैयार हो गया बगीचा
वीरेन्द्र ताम्रकार बताते हैं कि लगभग पांच साल पहले उन्होंने यहां जमे ईटों,पत्थरों व पॉलिथिन आदि के कचरे की परतों की खुदाई और उस कचरे का निपटानशुरू किया। जब स्वस्थ मिट्टी निकल आई, तब वहां और मिट्टी डलवाकर उस पर पेड़ पौधे लगाना शुरू किया। पेड़ों को पानी देने का शुरूआती काम बाजू में बहने वाले गंदे नाले से स्वयं ही किया।

बाद में जब पेड़ पौधे सरसब्ज होने लगे तो नगर पालिका ने यहां एक नलकूप खनन करवा दिया और मुक्तिधाम की चहारदीवारी, प्रतीक्षालय आदि का निर्माण करा दिया। इन बरसों में मुक्तिधाम के प्रवेश द्वार से सटे लगभग 4000 वर्गफीट क्षेत्रफल में विभिन्न प्रकार के फलदार और फूलों के लगभग 1000 से ज्यादा पेड़ लग गए हैं। जमीन पर हरी घास भी उगाई गई है।

अब भी जब कि पेड़ काफी बड़े-बड़े हो चुके हैं, वीरेन्द्र ताम्रकार अपनी कामकाजी व्यस्तता से समय निकालकर यहां पेड़ों की देखभाल व पानी देने के लिए रोज आते हैं। वे कहते हैं, दुनिया अपने लिए जीती है, दूसरों के लिए जियो तो कुछ और बात होती है। मैंने तो अपने परिवारजनों के तमाम कड़े विरोध के बावजूद अपने मृत शरीर को भी मेडीकल के छात्रों के उपयोग के लिए मेडीकल कॉलेज को दान कर दिया है।

मुक्तिधाम में सघन पौधरोपण और उनकी परवरिश का काम अब भी चल रहा है। अब यह कार्य मेरी दिनचर्या में शामिल हो गया है। अब मुक्तिधाम पर लोग आते हैं तो इस बगीचे में जरूर जाते हैं। इस काम को अब मैं ताउम्र करना चाहता हूं।
वीरेन्द्र ताम्रकार, बैरागपुरा भिण्ड

वीरेन्द्र ताम्रकार का परिश्रम सराहनीय व प्रेरणादायी है। उन्होंने ऐसी जमीन को हराभरा कर दिया, जहां पेड़ पौधों का उगना कतई मुश्किल था।
कलावती वीरेन्द्र मिहोलिया, अध्यक्ष नपा परिषद भिण्ड

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