ग्वालियर। दतिया में पीतांबरा माता का मंदिर है, जो देश के लोकप्रिय शक्तिपीठों में से एक है। कहा जाता है कि जब भी कोई भक्त यहां श्रद्धा से माता से कुछ मांगता है तो वह उसे अवश्य प्राप्त होता है। नवरात्र उत्सव शुरू हो चुकें हैं। इस मौके पर हम आपको बता रहा हैं, दतिया जिले में स्थित मां पीतांबरा के मंदिर के बारे में…
मां पीतांबरा शत्रु नाश की अधिष्ठात्री देवी है और राजसत्ता प्राप्ति में मां की पूजा का विशेष महत्व होता है।क्या आपको मालूम है चीन से युद्ध के दौरान दतिया स्थित पीतांबरा माता ने ही हमारी मदद की थी। जिसके बाद चीन की सेना ने युद्ध रोक दिया था।
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दरअसल भारत चीन युद्ध के समय यहां फौजी अधिकारियों व तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के अनुरोध पर देश की रक्षा के लिए मां बगलामुखी की प्रेरणा से 51 कुंडीय महायज्ञ कराया गया था। जिसके परिणामस्वरूप 11वें दिन अंतिम आहुति के साथ ही चीन ने अपनी सेनाएं वापस बुला ली थीं। उस समय यज्ञ के लिए बनाई गई यज्ञशाला आज भी यहां स्थित है। यहां लगी पट्टिका पर इस घटना का उल्लेख भी है।
कहा जाता है कि जब-जब देश के ऊपर विपत्तियां आती हैं तब-तब कोई न कोई न कोई गोपनीय रूप से मां बगलामुखी की साधना व यज्ञ-हवन अवश्य ही कराते हैं। मां पीतांबरा शक्ति की कृपा से देश पर आने वाली बहुत सी विपत्तियां टल जाती हैं। इसी प्रकार सन् 1965 और 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में मां बगलामुखी ने देश की रक्षा की। सन् 2000 में भी कारगिल में भारत-पाकिस्तान के बीच पुन: युद्ध हुआ, किंतु हमारे देश के कुछ विशिष्ट साधकों ने मां बगलामुखी की गुप्त रूप से पुन: साधनाएं व यज्ञ किए, जिससे दुश्मनों को मुंह की खानी पड़ी। ऐसा कहा जाता है कि यह यज्ञ तात्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कहने पर यहां कराया गया था।
रोज बदलती हैं रूप
कहा जाता है कि मां पीतांबरा देवी अपना दिन में तीन बार अपना रुप बदलती हैं मां के दर्शन से सभी भक्तों की मनोकामना पूरी होती है। इस मंदिर को चमत्कारी धाम भी माना जाता है।
राजसत्ता की देवी
मध्यप्रदेश के दतिया जिले में स्थित मां पीतांबरा को राजसत्ता की देवी माना जाता है। इसी रूप में भक्त उनकी आराधना करते हैं। राजसत्ता की कामना रखने वाले भक्त यहां आकर गुप्त पूजा अर्चना करते हैं।
चमत्कारी धाम है ये
इस सिद्धपीठ की स्थापना 1935 में स्वामीजी के द्वारा की गई। माना जाता है कि ये चमत्कारी धाम स्वामीजी के जप और तप के कारण ही एक सिद्ध पीठ के रूप में जाना जाता है। इसके अलावा यहां भक्तों को मां के दर्शन एक छोटी सी खिड़की से ही होते हैं। जबकि मंदिर प्रांगण में स्थित वनखंडेश्वर महादेव शिवलिंग को महाभारत काल का बताया जाता है।
कभी श्मशान था यहां
कहा जाता है कि कभी इस स्थान पर श्मशान हुआ करता था, लेकिन आज एक विश्वप्रसिद्ध मन्दिर है। स्थानीय लोगों की मान्यता है कि मुकदमे आदि के सिलसिले में मां पीताम्बरा का अनुष्ठान सफलता दिलाने वाला होता है।
पीताम्बरा पीठ के प्रांगण में ही ‘मां धूमावती देवी’ का मन्दिर है, जो भारत में भगवती धूमावती का एक मात्र मन्दिर है।
पीताम्बरा पीठ की स्थापना एक सिद्ध संत, जिन्हें लोग स्वामीजी महाराज कहकर पुकारते थे, ने 1935 में की थी। श्री स्वामी महाराज ने बचपन से ही संन्यास ग्रहण कर लिया था। वे यहां एक स्वतंत्र अखण्ड ब्रह्मचारी संत के रूप में निवास करते थे। स्वामीजी प्रकांड विद्वान व प्रसिद्ध लेखक थे। उन्हेंने संस्कृत, हिन्दी में कई किताबें भी लिखी थीं। गोलकवासी स्वामीजी महाराज ने इस स्थान पर ‘बगलामुखी देवी’ और धूमावती माई की प्रतिमा स्थापित करवाई थी। वहीं यहां बना वनखंडेश्वर मन्दिर महाभारत कालीन मन्दिरों में अपना विशेष स्थान रखता है। यह मन्दिर भगवान शिव को समर्पित है।
ऐेसी है देवी मां की प्रतिमा
पीताम्बरा देवी की मूर्ति के हाथों में मुदगर, पाश, वज्र व शत्रुजिव्हा है। यह शत्रुओं की जीभ को कीलित कर देती हैं। मुकदमे आदि में इनका अनुष्ठान सफलता प्राप्त करने वाला माना जाता है। इनकी आराधना करने से साधक को विजय प्राप्त होती है। शुत्र पूरी तरह पराजित हो जाते हैं। यहां के पंडितों के अनुसार जो राज्य आतंकवाद व नक्सलवाद से प्रभावित हैं, यदि वह मां पीताम्बरा की साधना व अनुष्ठान कराएं, तो उन्हें इस समस्या से निजात मिल सकती है।
देश का एकमात्र धूमावती मन्दिर
पीताम्बरा पीठ के प्रांगण में ही मां भगवती धूमावती देवी का देश का एक मात्र मन्दिर है। ऐसा कहा जाता है कि मन्दिर परिसर में मां धूमावती की स्थापना न करने के लिए अनेक विद्वानों ने स्वामीजी महाराज को मना किया था। तब स्वामी जी ने कहा कि- “मां का भयंकर रूप तो दुष्टों के लिए है, भक्तों के प्रति ये अति दयालु हैं।” समूचे विश्व में धूमावती माता का यह एक मात्र मन्दिर है।
जब मां पीताम्बरा पीठ में मां धूमावती की स्थापना हुई थी, उसी दिन स्वामी महाराज ने अपने ब्रह्मलीन होने की तैयारी शुरू कर दी थी। ठीक एक वर्ष बाद मां धूमावती जयन्ती के दिन स्वामी महाराज ब्रह्मलीन हो गए। मां धूमावती की आरती सुबह-शाम होती है, लेकिन भक्तों के लिए धूमावती का मन्दिर सिर्फ शनिवार को सुबह-शाम 2 घंटे के लिए खुलता है। मां धूमावती को नमकीन पकवान, जैसे- मंगोडे, कचौड़ी व समोसे आदि का भोग लगाया जाता है।
मंदिर का ऐतिहासिक सत्य
मां पीताम्बरा बगलामुखी का स्वरूप रक्षात्मक है। पीताम्बरा पीठ मन्दिर के साथ एक ऐतिहासिक सत्य भी जुड़ा हुआ है। सन् 1962 में चीन ने भारत पर हमला कर दिया था। उस समय देश के प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू थे।
भारत के मित्र देशों रूस व मिस्र ने भी सहयोग देने से मना कर दिया था, तभी किसी योगी ने पंडित जवाहर लाल नेहरू से स्वामी महाराज से मिलने को कहा।
उस समय नेहरू दतिया आए और स्वामीजी से मिले। स्वामी महाराज ने राष्ट्रहित में एक यज्ञ करने की बात कही। यज्ञ में सिद्ध पंडितों, तांत्रिकों व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को यज्ञ का यजमान बनाकर यज्ञ प्रारंभ किया गया। यज्ञ के नौंवे दिन जब यज्ञ का समापन होने वाला था तथा पूर्णाहुति डाली जा रही थी, उसी समय ‘संयुक्त राष्ट्र संघ’ का नेहरू जी को संदेश मिला कि चीन ने आक्रमण रोक दिया है। मन्दिर प्रांगण में वह यज्ञशाला आज भी बनी हुई है।
मां बगलामुखी का मन्दिर
दस महाविद्याओं में से एक मां बगलामुखी का मन्दिर है, यह पीताम्बरा पीठ। सन् 1920 में स्वामी जी महाराज द्वारा स्थापित यह देश के सबसे बड़े शक्तिपीठों में से एक है। ‘बगलाÓ शब्द संस्कृत के ‘वल्गा’ शब्द का अपभ्रंश है, जिसका अर्थ है, दुल्हन। देवी मां के अलौकिक सौन्दर्य के कारण उन्हें यह नाम मिला। पीले वस्त्र पहनने के कारण उन्हें पीताम्बरा भी कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि आचार्य द्रोण के पुत्र अश्वत्थामा चिरंजीवी होने के कारण आज भी यहां पूजा-अर्चना करने आते हैं।