ग्वालियर। भारतीय संस्कृति में पूजा-अर्चना, संस्कार, संस्कार विधि, मंगल कार्य, यात्रा गमन, शुभ कार्यों के प्रारंभ में माथे पर तिलक लगाकर उसे अक्षत से विभूषित किया जाता है । तिलक केवल धार्मिक मान्यता नहीं बल्कि इसके पीछे कई वैज्ञानिक कारण भी बताए जाते हैं । ज्योतिष के अनुसार यदि तिलक को वार या दिन के अनुसार लगाया जाए तो व्यक्ति कई प्रकार की समस्याओं से ही नहीं बचता बल्कि कई प्रकार से शुभ फलों को भी प्राप्त करता है। पंडितों के मुताबिक तिलक लगाने से कुंडली के कई ग्रह दोष स्वत: ही समाप्त हो जाते हैं ।
चेतना केंद्र पर लगाएं तिलक
तिलक का अर्थ है पूजा के बाद माथे पर लगाया जानेवाला निशान । उत्तर भारत में आज भी तिलक आरती के साथ आदर सत्कार स्वागत कर तिलक लगाया जाता है ।
तिलक हमेशा भौंहो के बीच ‘आज्ञाचक्र’ भ्रुकुटी पर किया जाता है जो कि चेतना केंद्र भी कहलाता है एवं हमारे चिंतन-मनन का स्थान है , यह चेतन-अवचेतन अवस्था में भी जागृत एवं सक्रिय रहता है ।
तिलक के प्रकार
तिलक के मृतिका, भस्म, चंदन, रोली, सिंदूर, गोपी आदि प्रकार हैं। सनातन धर्म में शैव, शाक्त, वैष्णव और अन्य मतों के अलग-अलग तिलक होते हैं। मान्यता के अनुसार चंदन का तिलक लगाने से पापों का नाश होता है, व्यक्ति संकटों से बचता है साथ ही ऐसे व्यक्ति पर लक्ष्मी की कृपा हमेशा बनी रहती है, इसके अलावा ज्ञानतंतु संयमित व सक्रिय रहते हैं।
चन्दन के प्रकार : हरि चंदन, गोपी चंदन, सफेद चंदन, लाल चंदन, गोमती और गोकुल चंदन।
वारों के अनुसार तिलक
सोमवार : सोमवार का दिन भगवान शंकर का दिन होता है और इस वार का स्वामी ग्रह चंद्रमा हैं।
चंद्रमा चुंकि मन का कारक ग्रह माना गया है। इसलिए मन को काबू में रखकर मस्तिष्क को शीतल और शांत बनाए रखने के लिए आप सफेद चंदन का तिलक लगाएं। इस दिन विभूति या भस्म भी लगा सकते हैं।
मंगलवार : मंगलवार को हनुमानजी का दिन माना गया है। इस दिन का स्वामी ग्रह मंगल है।
मंगल लाल रंग का प्रतिनिधित्व करता है। इस दिन लाल चंदन या चमेली के तेल में घुला हुआ सिंदूर का तिलक लगाने से ऊर्जा और कार्यक्षमता में विकास होता है। इससे मन की उदासी और निराशा हट जाती है और दिन शुभ बनता है।
बुधवार : बुधवार को भगवान गणेश का दिन माना जाता है। इस दिन का ग्रह स्वामी है बुध ग्रह।
बुध ग्रह व्यक्ति की बौद्धिकता का प्रतिनिधित्व करता है। इस दिन सूखे सिंदूर (जिसमें कोई तेल न मिला हो) का तिलक लगाना चाहिए। इस तिलक से बौद्धिक क्षमता तेज होती है और दिन शुभ रहता है।
गुरुवार : गुरुवार या बृहस्पतिवार भगवान विष्णु का माना जाता है। इस दिन का स्वामी ग्रह है बृहस्पति है।
गुरु को पीला या सफेद मिश्रित पीला रंग प्रिय है। इस दिन सफेद चन्दन की लकड़ी को पत्थर पर घिसकर उसमें केसर मिलाकर लेप को माथे पर लगाना चाहिए या टीका लगाना चाहिए। हल्दी या गोचरन का तिलक भी लगा सकते हैं। माना जाता है कि इससे मन में पवित्र और सकारात्मक विचार तथा अच्छे भावों का उद्भव होगा जिससे दिन भी शुभ रहेगा और आर्थिक परेशानी का हल भी निकलेगा।
शुक्रवार : शुक्रवार का दिन भगवान विष्णु की पत्नी लक्ष्मीजी का रहता है। इस दिन का ग्रह स्वामी शक्र है।
हालांकि इस ग्रह को दैत्यराज भी कहा जाता है। दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य थे। इस दिन लाल चंदन लगाने से जहां तनाव दूर रहता है वहीं इससे भौतिक सुख-सुविधाओं में भी वृद्धि होती है। इस दिन सिंदूर भी लगा सकते हैं।
शनिवार : शनिवार को भैरव, शनि और यमराज का दिन माना जाता है। इस दिन के ग्रह स्वामी है शनि ग्रह।
शनिवार के दिन विभूत, भस्म या लाल चंदन लगाना चाहिए , जिससे भैरव महाराज प्रसन्न रहते हैं और किसी भी प्रकार का नुकसान नहीं होने देते। दिन शुभ रहता है।
रविवार : रविवार का दिन भगवान सूर्य का दिन रहता है। इस दिन के ग्रह स्वामी है सूर्य है जो ग्रहों के राजा भी हैं।
इस दिन लाल चंदन या हरि चंदन लगाएं। भगवान सूर्य की कृपा रहने से जहां मान-सम्मान बढ़ता है वहीं निर्भयता भी आती है।
अंगुलियों का अपना महत्व
जानकारों के मुताबिक तिलक लगवाते समय सिर पर हाथ इसलिए रखते हैं कि सकारात्मक ऊर्जा हमारे शीर्ष चक्रपर एकत्रित हो साथ ही हमारे विचार सकारात्मक हो व कार्यसिद्ध हो । तिलक में हाथ की चारों अंगूलियों और अंगूठे का एक विशेष महत्व है , अनामिका अंगुली शांति प्रदान करती है, मध्यमा अंगुली मनुष्य की आयु वृद्धि करती है । अंगूठा प्रभाव, ख्याति और आरोग्य प्रदान करता है जबकि तर्जनी मोक्ष देने वाली अंगुली है । ज्योतिषों के अनुसार अनामिका व अंगूठे से तिलक करने में सदा शुभ माने गए हैं । अनामिका सूर्य पर्वत की अधिष्ठाता अंगुली है । यह अंगुली सूर्य का प्रतिनिधित्व करती है । अंगूठा हाथ में शुक्र का प्रतिनिधित्व करता है और शुक्र ग्रह जीवन शक्ति का प्रतीक है ।
तिलक लगाने के ये हैं मंत्र
1. केशवानन्न्त गोविन्द बाराह पुरूषोत्तम ।
पुण्यं यशस्यमायुष्यं तिलकं में प्रसीदतु ।।
2. कान्ति लक्ष्मीं धृतिं सौख्यं सौभाग्यमतुलं बलम् ।
ददातु चन्दनं नित्यं सततं धारयाम्यहम् ।।