ग्वालियर खंडपीठ की जस्टिस शील नागू और जस्टिस दीपक अग्रवाल की युगलपीठ ने शिक्षक प्रशिक्षण पाठ्यक्रम (DLED) से संबंधित याचिका खारिज करते हुए यह बात कही। याचिका में पाठ्यक्रम के छात्र ने द्वितीय वर्ष में एक से अधिक सैद्धांतिक विषय में अनुत्तीर्ण होने पर दोबारा परीक्षा में बैठने की अनुमति मांगी थी। न्यायालय ने कहा कि राज्य सरकार ने शिक्षक पद के लिए न्यूनतम मानक तय किए हैं।
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इसी वजह से सरकारी प्राथमिक स्कूलों में औसत या उससे भी निचले स्तर के व्यक्ति शिक्षक बन गए हैं। न्यायालय ने सरकार से अपेक्षा की है कि राज्य सरकार और उसके जो अधिकारी शिक्षक पद की योग्यता के मानक तथ करते हैं, वे सभी प्राथमिक शिक्षा के तेजी से गिरते स्तर को रोकने का प्रयास करें।
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प्राचीन काल में शिक्षक सिखाते थे योग्यता,नैतिकता और अनुशासन
न्यायालय ने कहा कि प्राचीन काल में शिक्षक सबसे प्रतिष्ठित नागरिक होता था, क्योंकि वे छात्रों में योग्यता, अनुशासन के साथ नैतिकता का गुण भी पैदा करते थे। अयोग्य शिक्षक प्राथमिक शिक्षा में बाधा ही होगा। वह योग्य छात्र नहीं बना सकता।
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हाईकोर्ट ने की गंभीर टिप्पणी
न्यायालय ने इस मामले में टिप्पणी करते हुए लिखा कि इस व्यवस्था में अंतत: वह मासूम बच्चा हार जाता है, जो सरकारी प्राथमिक विद्यालय में गुणवत्ता शिक्षा की उम्मीद के साथ भर्ती होता है। विद्यालय में बच्चों को न केवल पढ़ना-लिखना सिखाया जाता बल्कि सही और गलत का अंतर करने की क्षमता भी विकसित कराया जाता है। नैतिक, अनैतिक का अंतर समझना और इससे बढ़कर समाज और राष्ट्र के लिए जीवन के अनुशासन भी यहीं सीखता है। यह मूलभूत गुण बच्चे में तभी आ सकते हैं, जब उसे पढ़ाने वाले शिक्षक चरित्र, आचरण, व्यवहार और मानवीय मूल्यों में उत्कृष्ट गुणवत्ता वाले हों।