इस सीट पर चुनावी रण में पाला बदलने का इतिहास जितना पुराना है, उतना ही सिंधिया परिवार (scindia royal family) के सामने यदुवंश के उम्मीदवार को उतारने का सिलसिला भी। वैसे तो यह सिंधिया परिवार के लिए परंपरागत सीट मानी जाती है, लेकिन 2019 के चुनाव में दलबदल से मैदान में आए केपी सिंह ने इतिहास बदला। तब कांग्रेस से सिंधिया के खिलाफ उनके ही करीबी केपी को लड़ाकर भाजपा ने सीट पर कब्जा जमाया। 2020 की सियासी करवट में भाजपा का दामन थामने वाले सिंधिया इस बार भगवा रंग लेकर किस्मत आजमा रहे हैं तो पिछली जीत के यादव फैक्टर के आधार पर कांग्रेस ने यादवेंद्र सिंह पर दांव लगाया है।
अजब संयोग: ज्योतिरादित्य को हराने वाले केपी सिंह भी मुंगावली से ब्रजेंद्र सिंह यादव से विधानसभा चुनाव हार गए थे। राव यादवेंद्र भी मुंगावली से ब्रजेंद्र सिंह से विस चुनाव हारने के बाद अब लोकसभा चुनाव में किस्मत आजमा रहे हैं।
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गुना सीट पर 1957 में दूसरे लोकसभा चुनाव से सिंधिया परिवार की एंट्री हुई। कांग्रेस, स्वतंत्र पार्टी, जनसंघ से होते हुए फिर कांग्रेस और अब भाजपा तक का सियासी सफर रहा। इस बीच पौने 2 लाख यादव मतदाताओं के सहारे भाजपा ने माधवराव, फिर ज्योतिरादित्य के सामने राव देशराज सिंह यादव को उतारा, लेकिन पलड़ा हमेशा सिंधिया परिवार का भारी रहा।
ज्योतिरादित्य के खिलाफ भाजपा उम्मीदवार रहे राव देशराज सिंह यादव भले ही चुनाव नहीं जीत सके, लेकिन पिछले चुनाव में सिंधिया के सामने भाजपा की दलबदल की सियासत कामयाब हो गई। केपी ने भाजपा को जीत दिलाई। इसी समीकरण के भरोसे कांग्रेस ने भी पुराने प्रतिद्वंद्वी देशराज के बेटे यादवेंद्र को उतारा है। वे परिवार के साथ कांग्रेस में आए थे। पंचायत चुनाव में उनकी मां और भाई भाजपा में लौट गए।
1952 में पहले आम चुनाव में हिन्दू महासभा के वीजी देशपांडे यहां से चुने गए। 1957 में सिंधिया परिवार की एंट्री हुई। विजयाराजे इस सीट से कांग्रेस के टिकट पर जीतीं। अगला चुनाव उन्होंने ग्वालियर से लड़ा। 1967 में कांग्रेस छोड़ गुना से स्वतंत्र पार्टी से जीतीं। इसके बाद वे जनसंघ में शामिल हो गईं। तब जेबी कृपलानी यहां से चुनाव जीते।
गुना सीट पर ज्योतिरादित्य भी पहुंचे। भाजपा के राव देशराज सिंह को हराया। चार बार जीतने के बाद विजयी रथ को उनके ही करीबी केपी सिंह यादव ने 2019 में रोका। कांग्रेस छोड़ भाजपा से चुनाव लड़ा और ज्योतिरादित्य को हराया। अब ज्योतिरादित्य भाजपा से हैं। जिन देशराज को पहली बार हराया था उनका बेटा दलबदल कर कांग्रेस से उनके मुकाबले में है।
माधवराव सिंधिया सियासी किस्मत आजमाने गुना पहुंचे। 1971 का चुनाव जनसंघ की ओर से जीता। 1977 में स्वतंत्र प्रत्याशी के रूप में जीते। आखिर में कांग्रेस के टिकट पर 1980 में जीते। 1984 में महेंद्र सिंह कांग्रेस से सांसद बने। भाजपा के अस्तित्व में आने पर विजयाराजे चार बार गुना से जीतीं। 1999 में फिर माधवराव कांग्रेस से जीते।