कोर्ट में मालती सक्सेना ने तर्क दिया कि पति ने 2013 में उसका नाम सरकारी रिकॉर्ड में जोड़ने के लिए आवेदन दिया था। बाबू की गलती के कारण उनका नाम सरकारी रेकॉर्ड में नहीं जुड़ सका। इस कारण उसे 1998 में मृत मान लिया गया। सेवा अभिलेख को भी दुरुस्त नहीं किया गया।
पति की मृत्यु के बाद परिवार पेंशन का लाभ लेने का प्रयास किया, लेकिन विभाग ने इसे देने से इनकार कर दिया। विभाग ने यह तक कहा कि वीके सक्सेना ने दो विवाह किए थे। संभवत: पहली पत्नी का निधन हो चुका है। इसलिए याचिकाकर्ता पेंशन की हकदार नहीं है।
दफ्तरों के चक्कर काटती रही और विभाग उसे मृत बताता रहा
वीके सक्सेना जल संसाधन विभाग शिवपुरी में सहायक यंत्री थे। वह 2000 में वीआरएस लेने के बाद झांसी में बस गए। वीआरएस के बाद उन्हें पेंशन मिलने लगी। उन्होंने 2013 मेें पत्नी को नॉमिनी बनाने के लिए जल संसाधन विभाग में शपथ पत्र के साथ आवेदन दिया। 2019 में वीके सक्सेना की मौत हो गई। पति की मौत के बाद मालती देवी सक्सेना ने 13 दिसंबर 2019 को फैमिली पेंशन के लिए आवेदन दिया था, लेकिन जल संसाधन विभाग ने उन्हें मृत बताकर पेंशन देने मना कर दिया।
खुद को सरकारी कागज में जिंदा करने के लिए वह हर दफ्तर घूमीं, लेकिन किसी ने सुनवाई नहीं की। इसके बाद हाईकोर्ट में याचिका दायर की। मालती सक्सेना ने युगल पीठ में चुनौती दी थी।