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हेल्थ इंश्योरेंस क्लेम नहीं दिया, तो कोर्ट ने बीमा कंपनी को सुनाया ऐसा फरमान

जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण आयोग (उपभोक्ता फोरम) ने बीमा कंपनी को दिया आदेश…

ग्वालियरNov 20, 2023 / 09:09 am

Sanjana Kumar

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जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण आयोग (उपभोक्ता फोरम) ने बीमा कंपनी को आदेश दिया है कि परिवादी के इलाज में खर्च हुआ है, उस राशि को छह फीसदी ब्याज के साथ अदा करे। साथ ही मानसिक पीड़ा पहुंचाई है, उसके लिए 5 हजार रुपए क्षतिपूर्ति के रूप में दिए जाएं। केस लडऩे का खर्च के 5 हजार रुपए अलग देने होंगे।

पंकज श्रीवास्तव की बेटी अनुज्ञा श्रीवास्तव को 28 अप्रेल-2023 को तेज बुखार व पेट दर्द की शिकायत हुई थी। इसके बाद डॉक्टर को दिखाया तो जांच में एनीमिया निकला। इसके बाद अस्पताल में भर्ती किया गया। जांच में सेप्टीसीमिया भी निकला। अस्पताल में भर्ती के दौरान 38 हजार 670 रुपए खर्च हुए। स्टार हेल्थ एलाईड इंश्योरेंश कंपनी से पॉलिसी ली थी। 2017 से लगातार किस्त भर रहे थे। बीमा कंपनी से क्लेम मांगा तो कंपनी ने देने से मना कर दिया और तर्क दिया कि घर में भी इलाज हो सकता था।

अस्पताल में भर्ती होने की जरूरत नहीं थी। अस्पताल के बिलों में कांट छांट थी। क्लेम राशि लेने के लिए फोरम में केस दायर किया। बीमा कंपनी ने परिवाद को खारिज करने की मांग की। फोरम ने 38 हजार 670 रुपए छह फीसदी ब्याज के साथ अदा करने का आदेश दिया है।

आपको भी नहीं मिल रहा है बीमा क्लेम तो सीधे पहुंचे यहां

ऐसे मामले अब अक्सर सामने आते हैं, ऐसे में सवाल उठता है कि यदि बीमा कंपनी आपको इलाज का खर्च नहीं देती हैं तो आपको कहां जाना चाहिए कोर्ट, लोकपाल या फिर उपभोक्ता फोरम? इन तीनों में से बेहतर विकल्प है उपभोक्ता फोरम। लेकिन क्यों? एक्सपर्ट बताते हैं पीडि़त पॉलिसी होल्डर के लिए यह आवश्यक नहीं है कि वह कोर्ट से से पहले बीमा लोकपाल से संपर्क कर। वह सीधे उपभोक्ता फोरम से संपर्क कर सकता है। वहीं यदि कोई सुप्रीम कोर्ट ही जाना चाहता है तो ये भी बेहतर विकल्प है, लेकिन इस केस की प्रक्रिया लंबी हो सेती है। वहीं लोकपाल की प्रक्रिया भी की जा सकती है, लेकिन लोकपाल की प्रक्रिया का उपयोग करना फायदेमंद हो सकता है। लोकपाल ऐसे मामलों से निपटने में माहिर है। शिकायतकर्ता के पास यह विकल्प है कि वह लोकपाल के किसी भी निर्णय को स्वीकार करे या न करें। यानी पीडि़त को लगे कि लोकपाल का आदेश अनुकूल नहीं है, तो शिकायतकर्ता अदालत का दरवाजा खटखटा सकते हैं।

उपभोक्ता फोरम सबसे बेस्ट विकल्प

उपभोक्ता अदालत या लोकपाल के पास जाना आसान और यह सस्ता भी है। दोनों फोरम्स के लिए एक साधारण पत्र एक वैध शिकायत बन सकता है। पॉलिसी होल्डर्स को ऐसे मामलों के लिए वकील करने की जरूरत नहीं होती। लेकिन उपभोक्ता फोरम में जाने से शिकायतकर्ता को लाभ मिल सकता है। दरअसल मामला उपभोक्ता अदालत के अधिकार क्षेत्र में आता है। उपभोक्ता फोरम इसके अंतर्गत आने वाले प्रत्येक व्यक्ति की शिकायतें सुनने के लिए अधिकृत है। यह एक कम खर्चीला विकल्प है। साथ ही प्रक्रियाओं, समय सीमा भी यहां कम लगती है। उपभोक्ता फोरम्स ने पिछले कुछ वर्षों में इस विषय पर एक न्यायशास्त्र विकसित किया है और शिकायतकर्ता की चिंताओं का प्रभावी ढंग से निवारण कर सकती है। जल्दी सुनवाई और जल्दी फैसला उपभोक्ता को न्याय से संतुष्टी भी मिल जाती है।

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