दरअसल, अफ्रीकी चीते की उंचाई करीब दो फीट होती है। ऐसे में 6 फीट ऊंची घास चीते की ऊंचाई करीब दो फीट होती में वह छिप तो जाएगा, लेकिन शिकार को देख को नहीं देख पाएगा। है। इसलिये यहां होने वाली प्रोसोपीस और डाव की घा, छंटाई कर ढाई पीट में लाना होगा। कटीली झाड़ियां भी बड़ी मुसीबत हैं।
इसलिए यहां कमेटी ने दिए थे निर्देश
वहीं, चीता परियोजना के लिए कूनों पालपुर के चयन के बाद पिछले साल श्योपुर पहुंची सुप्रीम कोर्ट की साधिकार समिति की उप समिति ने चीता लाने से पहले घास, झाड़ी मैनेजमेंट पर विशेष ध्यान देने के निर्देश दिए थे।
पूरी तरह खात्मे में लगेंगे 5 साल
जिस क्षेत्र में बाड़ा बनाया जा रहा है वहां निमझा पेड़ और कटीली झाड़ियां हैं। चीता कटीली झाड़ियों में नहीं रहता है। यदि वह इन झाड़ियों में फंस गया तो यह उसकी जान के लिए घातक हो सकता है। इसके चलते बाड़े के अंदर की इस तरह की कंटीली झाड़ियों को नष्ट किया जा रहा है। इसे जड़ से नष्ट करने में 4-5 साल लगेंगे। फिलहाल ऊंची घास और कंटीली झड़ियों को नष्ट करने का काम सिर्फ बाड़े के अंदर किया जा रहा है। बाद में पूरे पार्क में होगा।
सोलर पंप से पानी
पार्क में चीतों के पानी के लिए छोटी-छोटी तलैया भी बनाई जाएंगी। इसका काम बारिश से पहले पूरा हो जाएगा। इसलिए इसे बनाने का काम तेजी से चल रहा है। गर्मी में इन तलैयों को भरने के लिए कई बोर किए गए हैं, जिनमें सोलर पंप लगाए जाएंगे।