उधर, जनता भी राजनैतिक दलों को सबक सिखाने को मन बना चुकी थी, लेकिन उनके पास कोई विकल्प भी नहीं था। लेकिन जनता के इस आक्रोश को और हवा दिया समाज के कुछ प्रबुद्धजनों ने। राजनैतिक दलों का प्रतीकात्मक विरोध करने के लिए एक विकल्प दिया। विकल्प के रूप में कुछ लोगों ने किन्नर आशा देवी उर्फ़
अमरनाथ यादव को प्रत्याशी बनवा दिया। किन्नर आशा देवी के मैदान में आने तक किसी को यह अहसास नहीं था कि वह लड़ाई में रहेंगी। खुद चुनाव लड़ाने का सुझाव देने वालों तक को नहीं। जानकार बताते हैं कि, मजाक-मजाक में शुरू हुआ चुनाव अचानक से परिवर्तन का वाहक बनने लगा।
राजनैतिक दलों को सबक सिखाने के लिए जनता की सहानुभूति आशा देवी के साथ होने लगी। जब किन्नर शबनम मौसी गोरखपुर प्रचार करने पहुंची तो रेलवे स्टेशन से नगर निगम तक ऐतिहासिक भीड़ थी। यह भीड़ राजनैतिक दलों के प्रति अपने गुस्से और परिवर्तन की कहानी कह रही थी। आशा देवी को चूड़ी चुनाव चिन्ह मिला था। चुनाव हुआ फिर परिणाम की प्रतीक्षा होने लगी। परिणाम आया तो सभी राजनैतिक दलों के प्रत्यशियों की जमानत जब्त थी। जनता मठाधीशी को सबक सिखा चुकी थी।
किन्नर आशा देवी गोरखपुर की मेयर बन चुकी थीं। लालबत्ती वाले रिक्शा से चलती थीं। आशा देवी आशा देवी जब चुनी गईं तो उन्होंने भी राजनीतिक दलों को सबक सिखाया तो एक संदेश भी दिया। कहते हैं कि, जनता अपना प्रतिनिधि चुन देती है। उसके बाद वह प्रतिनिधि खुद को जनता से सर्वोपरि होने की कोशिश में लग जाता। अचानक से लक्ज़री गाड़ी, आलिशान बंगले उसकी ठाठ में जुड़ जाते। लेकिन मेयर बनने के बाद किन्नर आशा देवी ने इन सबसे परहेज किया। वह जीतने के बाद रिक्शा से नगर निगम पहुंची। वह एक रिक्शा बनवाईं जिसपर लालबत्ती लगी हुई थी। लाल बत्ती लगा रिक्शा शहर के सड़कों पर जब दौड़ने लगा तो लोगों के आकर्षण का केंद्र बन गया।