गोरखपुर. रवि राय मनुष्य को सम्पूर्ण रूप में जीते हुए देखने की लालसा रखने वाले कथाकार हैं। सम्पूर्ण रूप से मनुष्यता को एक बच्चा ही जीता है। किशोर वय तक मनुष्य की बुद्धि सब कुछ न्योछावर करने को प्रेरित करती है जबकि वयस्क होते ही वह बुद्धि की अधीन होकर लाभ-हानि देखने लगता है। अकारण नहीं है कि रवि राय की कहानियों के सबसे जीवंत पात्र बच्चे हैं।
यह बातें वरिष्ठ कथाकार प्रो. रामदेव शुक्ल ने कही। वह प्रेमचन्द साहित्य संस्थान द्वारा गोरखपुर क्लब में कथाकार रवि राय के कहानी संग्रह बजरंग बली के लोकार्पण और उस पर बातचीत के कार्यक्रम में बोल रहे थे। रवि राय का यह पहला कहानी संग्रह है और इसमें उनकी छह कहानियां- ’ ग्रीशा ’, ‘ नेमप्लेट ’, ‘ मामा जी ’, ‘ चोर ’, ‘ बजरंग अली ’ और ’ माया बाबू ’ प्रकाशित हुई हैं।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे प्रो. शुक्ल ने कहा कि रवि राय की कहानियों में जबर्दस्त पठनीयता है। वह पाठकों को कहानी पढने पर मजबूर करती हैं। पठनीयता पाठक की पहली जरूरत है। कहानी को कहानी और कविता को कविता होनी चाहिए। उन्होंने कहानियों की भाषा की प्रशंसा करते हुए कहा कि कहानी ‘ बजरंग अली ’ विशनु महराज और नर्गिस की प्रेम कहानी नहीं बल्कि खान साहब और मास्टर साहब के प्रेम की कहानी है। उन्होंने कहा कि रवि राय की कहानियों का बड़ा एसेन्स है कि जिंदगी को भरपूर जीने देना चाहिए और इसकी शिक्षा बच्चों से लेनी चाहिए।
प्रो. अनिल राय ने चर्चा की शुरूआत करते हुए कहा कि रवि राय की कहानियां अपने समय के किसी अत्यंत चर्चित-प्रचलित सैद्धांतिक विमर्श में हस्तक्षेप करने या उसमें किसी तरह की भूमिका निभाने का दावा तो नहीं करती पर वे सभी विमर्श जिस मनुष्यता, जीवन और संस्कृति की रक्षा तथा प्रतिष्ठा की चिंताओं से अपनी संलग्ना की घोषणाएं करते दिखते हैं, ये कहानियां अपनी मूल संवेदना और भाव प्रक्रिया में कहीं बहुत गहरे स्तर पर मानवीय जीवन के सबसे कोमल और उदात्त की रक्षा की उसकी परियोजना का हिस्सा हैं।
युवा कथाकार उन्मेष सिन्हा ने कहा कि रवि राय की कहानियां आदमियत की तलाश करती कहानियां हैं। इसलिए कहानियों के केन्द्र में वे चरित्र मौजूद हैं जो प्रेम करते हैं। उनकी कहानियों में स्वभाविक रूप से मनुष्य की दो मूल प्रवृत्तियों प्रेम व करूणा विकसत हुई हैं। उन्होंने ‘ बजरंग अली ’ कहानी में कई उपकथाओं को अनावश्यक विस्तार बताया।
प्रो. अशोक सक्सेना ने भी कहानियों की पठनीयता पर चर्चा की। कवि प्रमोद कुमार ने कहा कि गोरखपुर के कथाकार यर्थाथ से जुड़े कथाकार हैं और उन्होंने लगातार नए प्रयोग किए हैं और अभिव्यक्ति को सक्षम बनाने का कार्य किया है। उन्होंने कहा कि कहानी के शीर्षक पर जरूर चर्चा होनी चाहिए और सिर्फ चर्चा के कारण कोई नाम रखने से बचना चाहिए। डा. अजीज अहमद ने कहानियां, समाज में जो कुछ हो रहा है उससे जानने और समझने में मदद करती हैं। रवि राय की कहानिया यह कार्य बखूबी करती हैं। प्रा.े चन्द्रभूषण अंकुर ने कहा कि रवि राय का जीवन अनुभव बहुत विस्तृत है।
आनन्द पांडेय ने कहानियों को मध्यमवर्गीय परिवेश की कहानी बताया और कहा कि कई बार लगता है कि कहानीकार कहानी लिखते हुए खुद रसमग्न है और पाठक की परवाह छोड़ देता है। यही कारण है कि चरित्र तो भोजपुरी बोलते ही हैं नैरेटर भी वही भाषा बोल रहा है।
वरिष्ठ आलेचक कपिलदेव ने कहा कि न्याय और प्रेम की पक्षधरता साहित्य का आदि उद्यम रहा है। इसी उद्यम को विमर्श के उंचे-उंचे धरातलों पर प्रतिष्ठित किया जाता रहा है। रवि राय की कहानियों में ऐसी कोई कहानी नहीं है तो सचेत वैचरिक विमर्श को केन्द्र में रख रची गई हो। उनकी कहानियां जीवन की अत्यंत स्वभाविक कहानियां हैं। कवि मनोज पांडेय ने कहा कि रवि राय पेशेवर साहित्यकार नहीं हैं जो छीनी हथौड़ी लेकर बैठे हैं। उन्होंने संग्रह में ‘ मामा जी ’ कहानी को महत्वपूर्ण बताया और इससे असहमति जाहिर की कि जटिल समय की कहानी सरल नहीं हो सकती।
वरिष्ठ कवि देवेन्द्र आर्य ने कहा कि रवि राय ने ‘ जैसा तू देखता है वैसा लिख ’ को अपने कहानी संग्रह में संभव कर दिखाया है। बिना किसी जार्गन, विमर्श, वैचारिक हमले के अपनी बात अपने ढंग से कही है। उनकी कहानियां मुहल्लेदारी की कहानियां है जिन लोगों ने मुहल्लों को देखा है वह इसे जानते हैं। कहानियों की सबसे बड़ा गुण विमर्शहीनता है।
वरिष्ठ कथाकार मदन मोहन ने कहा कि मै इससे सहमत नहीं हूं कि रवि की कहानियों में विमर्श, विद्रोह और क्रांतिधर्मिता नहीं हैं। उनकी कहानियों में यह सभी हैं लेकिन कथातत्व के रूप में हैं। पूरे फन में , कला में हैं। मै इसलिए इन कहानियों को प्रतिरोध की कहानी कहूंगा। क्रूर हिंसक समय में हस्तक्षेप करना प्रतिरोध है। रवि की कहानियां यह कार्य करती हैं। उन्होंने कहा कि कहानी के शीर्षक को अच्छा बताया और कहा कि उनकी कहानियां सरलता के साथ परिधि को तोड़ती हैं जो हमे मोहता है।
चर्चा में पत्रकार अशोक चैधरी, साहित्यकार आसिफ रउफ, बैंक कमी डीके राय, अशोक शुक्ल ने भी हिस्सा लिया और रवि राय की कानियों को पठनीयता और भाषा शैली की दृष्टि से प्रभावित करने वाला बताया। इसके पहले रवि राय ने अपनी रचना यात्रा के बारे में बताते हुए कहा कि उन्होंने अपने कैरियर की शुरूआत पत्रकारिता से की लेकिन बाद में बैंक की नौकरी करते हुए लिखना छूट गया। वर्ष 1995 से फिर से लिखना शुरू किया। कार्यक्रम का संचालन प्रेमचन्द साहित्य संस्थान के सचिव मनोज कुमार सिंह ने किया।
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