कहते हैं एक जमाने में पूर्वांचल में हरिशंकर तिवारी के नाम की तूती बोलती थी। उन्होंने जेल में रहते हुए चुनाव लड़ा था। ऐसा माना जाता है हिंदुस्तान में जेल में रह कर सबसे पहले चुनाव जीतने वाले नेता हरिशंकर तिवारी ही थे। इस वजह से भी हरिशंकर तिवारी यूपी के कद्दावर नेता जाने जाते थे।
चिल्लूपार विधानसभा सीट पर उनका दो दशक से भी ज्यादा समय तक दबदबा रहा।
साल 1985 से लेकर 2007 तक वो इस सीट से एमएलए की चुनाव जीतकर आते रहे। कहते हैं जब आपातकाल से पहले देश में छात्र आंदोलन और जेपी आंदोलन जोर पकड़ रहा था, उस आंदोलन की आग गोरखपुर विश्वविद्यालय भी पहुंच चुकी थी। लेकिन उस समय विश्वविद्यालय में हरिशंकर तिवारी का वर्चस्व कायम था। ब्राह्मण छात्रों के वो मसीहा कहे जाते थे। उनका अपना अलग गुट था।
यह साल 1985 का दौर था, जब हरिशंकर तिवारी ने चिल्लूपार विधानसभा सीट से उन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ा। उन्होंने कांग्रेस पार्टी के मार्कंडेय को भारी मतों से परास्त कर दिया। इसी के साथ हरिशंकर तिवारी देश के पहले ऐसे विधायक बने जिन्होंने जेल में रहकर चुनाव जीता।
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हरिशंकर तिवारी ने पहली बार जिस कांग्रेस पार्टी के प्रत्याशी को हराया बाद में वो फिर उसी पार्टी का दामन थाम लिया। लेकिन कांग्रेस पार्टी के बाद उनका संबंध भारतीय जनता पार्टी, समाजवादी पार्टी से भी रहा। हरिशंकर तिवारी 1996 में कल्याण सिंह की सरकार के समय विज्ञान एवं तकनीकी मंत्री थे।साल 2000 में वो स्टांप रजिस्ट्रेशन मंत्री बने। जब वो मायावती की सरकार में थे, इसके बावजूद भी उनका सपा से संबंध कायम रहा। यही वजह थी कि साल 2003 में उन्हें सपा सरकार में भी मंत्री पद मिल गया। इस साल के बाद हरिशंकर तिवारी की सियासत खत्म होने लगी। वो लगातार दो चुनाव हार गए।
2007 के बाद बेटों को सौंपी सियासत
दोनों ही बार राजेश त्रिपाठी ने उनको चुनाव में हरा दिया। इसके बाद उन्होंने चुनाव न लड़ने की ठानी और अपने दोनों बेटों को कुशल तिवारी और विनय शंकर तिवारी को अपनी राजनीतिक विरासत सौंप दी। लेकिन कहा जाता है कि हरिशंकर तिवारी ही ऐसे व्यक्ति थे, जिन्हें लोग पूर्वांचल का बाहुबली कहते थे।