अंग्रेजों की गुलामी से आजाद होने के बाद देश में पहली बार चुनाव फरवरी 1952 में हुआ था। लेकिन इस चुनाव से पांच महीने पहले ही सितंबर 1951 में श्याम शरण नेगी ने मतदान किया था। चुनाव से पांच महीने पहले मतदान करने वाले नेगी पहले आदमी थे। इसके पीछे एक दिलचस्प कहानी है। श्याम शरण नेगी के परिजनों ने वो कहानी साझा की।
106 वर्षीय श्याम शरण नेगी के निधन के बाद उन्हें पूरे सम्मान के साथ अंतिम विदाई दी गई। पुलिस की टुकड़ी और होमगार्ड के जवानों ने हवा में गोलियां चलाकर उन्हें सलामी दी। डीसी किन्नौर आबिद हुसैन सादिक ने नेगी के घर पहुंचकर परिवार के लोगों को ढांढस बंधाया और अंतिम यात्रा में शामिल हुए। घर से श्मशानघाट तक करीब 16 किमी की अंतिम यात्रा में हजारों लोग शामिल हुए।
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चुनाव आयोग के ब्रांड एंबेसडर श्याम सरण नेगी ने हर चुनाव में वोट डाला है। वे औरों को भी मतदान के लिए प्रेरित करते थे। चुनाव आयोग उन्हें किन्नौर के कल्पा बूथ में मतदान के लिए घर से लेकर जाता था। रेड कारपेट बिछाकर उनका स्वागत किया जाता था। श्याम सरण नेगी के देश के पहले मतदाता बनने की कहानी रोचक है।
फरवरी 1952 में देश में पहला लोकसभा चुनाव हुआ था। लेकिन हिमाचल प्रदेश के किन्नौर में भारी हिमपात के चलते पांच महीने पहले सितंबर 1951 में ही चुनाव कराए गए थे। तब आज के जैसे संसाधन नहीं थे। ऐसे में चुनाव आयोग ने किन्नौर में पांच माह पहले ही वोटिंग कराई थी। तब श्याम शरण नेगी किन्नौर के मूरंग स्कूल में बतौर अध्यापक कार्यरत थे।
चुनाव में उनकी भी ड्यूटी लगी थी। उस दौरान भी उनमें वोट देने के लिए भारी उत्साह था। उनकी ड्यूटी शौंगठोंग से मूरंग तक थी, लेकिन उनका बूथ कल्पा में था। इसलिए, चुनाव के दिन वो सुबह जल्दी वोट देकर अपनी ड्यूटी पर गए थे। उस रोज सुबह 6:15 बजे मतदान ड्यूटी पर पोलिंग पार्टी पहुंची। पोलिंग पार्टी के पहुंचते ही नेगी भी बूथ पहुंचे और जल्दी मतदान करवाने का निवेदन किया।
इस पर पोलिंग पार्टी ने रजिस्टर खोलकर उन्हें पर्ची दी। मतदान करते समय उनका नाम देश के पहले मतदाता के तौर पर दर्ज हुआ। वोट डालने के बाद नेगी अपनी ड्यूटी पर गए। बाद में उनका नाम देश के पहले वोटर के रूप में चर्चित हो गया।