गया-पटना। गुरू गोविन्द सिंह के 350वें प्रकाश पर्व पर प्रधानमंत्री ने मुख्य समारोह स्थल से गुरू गोविन्द सिंह पर डाक टिकट जारी किए। मुख्य पोस्टमास्टर जनरल ने डाक टिकटों के एलबम प्रधानमंत्री को दिए।
जानकारी के अनुसार दसमेश गुरू गोविन्द सिंह जी के प्रकाशोत्सव में पटना साहिब की पूण्य भूमि पर मत्था टेकने वालों की कतारें लंबी होती चली जा रही हैं। श्रद्धालुओं की कतार में पगड़धारी सिखों से अधिक स्थानीय हिन्दू श्रद्धालुओं का नजर आता रहा। गांधी मैदान स्थित दरबार साहिब में भी मत्था टेकने के लिए चारों ओर लंबी कतारें लगी रहीं।
बालक गोविन्द राय ने बचपन के चमत्कार गोविंद घाट – वर्तमान में कंगन घाट पर किए। गुरू जी बचपन में अपने साथियों की दो टोली बनाकर लड़ाई करते। किले बनाते। विजय प्राप्त करने के गुर बताते। विजयी टोली को पुरस्कृत भी इसी घाट पर करते थे। खुद सेनापति या राजा बन न्याय करते। इसी तट पर गुरू जी ने अपने सोने का कंगन गंगा में फेंका था। का जाता है कि जब लोग कंगन निकालने गए तो गंगा में चारों ओर कंगन ही कंगन देख अचंभित हो गए। इसी कारण तख्त श्री हरिमंदिर से सटे छोटे गुरूद्वारा का नाम कंगन घाट गुरूद्वारा रखा गया। इसी घाट पर गुरू जी ने पंडित शिवदत्त शर्मा को मानसिक शांति का वरदान भी दिया था।
जन्मस्थली से कुछ ही दूरी पर बाललीला गुरूद्वारा – मैनी संगीत में गुरूजी ने बचपन के चमत्कार किए थे। फतेहचंद मैनी नामक राजा को संतान नहीं थी। क दिन गोविंद राय रानी की गोद में बैठ गए और मां कह पुकारा। रानी ने खुश हो उन्हें धर्म पुत्र स्वीकार कर लिया। साथियों सहित गोविन्द राय को घुघुनी – उबले चने और पूड़ी खिलाई। तब से यहां प्रसाद के रूप में घुघुनी और पूड़ी ही मिलती है।
पंजाब में आनंदपुर नामक गांव बसाकर गुरू तेग बहादुर अपने परिजनों को बुलावा भेजा। निशानी के तौर पर गुरूजी अपने बचपन का झूला, चार तीर, छोटी तलवार, एक छोटा खंडा, एक छोटा कटार, एक कंधा, चंदन के खड़ाऊं छोड़ गए। उन्होंने वचन दिया कि जो कोई इस पर श्रद्धा रखेगा उसकी मनोकामना पूर्ण होगी।
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