पिछली सरकार से चली आ रहीं ये समस्याएं
आपको बता दें कि आम चुनाव से कुछ महीनों पहले से ही देश में अर्थव्यवस्था की सुस्ती, रोजगारों की कमी, जीडीपी में गिरावट देखने को मिल रही थी। इसके अलावा देश के औद्योगिक उत्पादन में भी गिरावट आ रही थी। अब जब मोदी सरकार ने निर्मला सीतारमण को नया वित्त मंत्री बना दिया है तो क्या वह देश की अर्थव्यवस्था में रफ्तार ला पाएंगी। ये सभी समस्याएं पिछली सरकार से ही चली आ रही हैं। इनको कम करने के लिए सरकार ने नए चेहरे को यह पदभार दिया है। इन सब चुनौतियों से निपटने के लिए सरकार को खपत बढ़ानी होगी, निवेश और निर्यात को बढ़ावा देना होगा और वित्तीय सेक्टर में नकदी के संकट को दूर करना होगा।
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अर्थव्यवस्था में सुस्ती
देश में चल रही अर्थव्यवस्था में सुस्ती को खत्म करने के लिए निर्मला सीतारमण को देश की जीडीपी को बढ़ाने के लिए कई चुनौतियों का सामना करना होगा। आर्थिक वृद्धि दर ( GDP ) वित्त वर्ष 2018-19 में सिर्फ 6.98 फीसदी रहने का अनुमान है। जो पिछले वित्त वर्ष की GDP ग्रोथ रेट 7.2 फीसदी से कम है। आपको बता दें कि जीडीपी ही देश की अर्थव्यवस्था को नापने का सबसे बड़ा पैमाना माना जाता है।
औद्योगिक उत्पादन में गिरावट
अगर हम औद्योगिक उत्पादन की उत्पादन का बात करें तो उसमें भी गिरावट देखने को मिली है। उद्योंगों को अर्थव्यवस्था का सबसे मजबूत पहिया माना जाता है क्योंकि बिना उद्योग के देश की अर्थव्यवस्था में मजबूती नहीं आ सकती है। विनिर्माण क्षेत्र में सुस्ती रहने के कारण मार्च में देश के औद्योगिक उत्पादन (IIP) में पिछले साल की तुलना में 0.1 फीसदी की गिरावट देखने को मिली है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक औद्योगिक उत्पादन का यह 21 माह का सबसे कमजोर प्रदर्शन है। पूरे वित्त वर्ष 2018-19 में औद्योगिक वृद्धि दर 3.6 फीसदी रही है।
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राजकोषीय घाटा और कर्ज
टैक्स कलेक्शन का सीधा असर राजकोषीय घाटे पर देखने को मिला है। टैक्स कलेक्शन कम होने से वित्त वर्ष 2018-19 (अप्रैल-मार्च) के शुरुआती 11 महीनों में भारत का राजकोषीय घाटा बजटीय लक्ष्य का 134.2 फीसदी हो गया है। सीजीए के आंकड़ों के मुताबिक पिछले वित्त वर्ष के शुरुआती 11 महीनों में राजकोषीय घाटा उस साल के लक्ष्य का 120.3 फीसदी था। निर्मला सीतारमण के सामने सबसे बड़ी चुनौती टैक्स कलेक्शन बढ़ाना और राजकोषीय घाटे को करना है।
जीएसटी 2.0
18 और 28 फीसदी के जीएसटी स्लैब से अब भी लोगों को दिक्कत है इसलिए इसको दो मुख्य स्लैब में मर्ज करने की जरूरत है। बीजेपी के मैनिफेस्टो में भी जीएसटी को सरल करने की बात कही गई थी। हो सकता है सरकार इस बारे में कोई मजबूत कदम उठाए।
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कच्चे तेल और महंगाई की चुनौती
देश में चल रहे लोकसभा चुनाव के चलते देश में महंगाई पर थोड़ी रोक लगी हुई थी, लेकिन चुनाव खत्म होते ही महंगाई ने तेजी पकड़ ली है, जिसका सीधा असर देश की आम जनता पर पड़ रहा है। इंटरनेशनल मोर्चे पर भी महंगाई बढ़ती हुई नजर आ रही है। देश में कच्चे तेल की कीमत बढ़ने लगी हैं, जिसके कारण पेट्रोल-डीजल की कीमतों में भी बढ़ोतरी देखने को मिल रही है। अमरीका और चीन के ट्रेड वॉर का असर भी देश में देखने को मिल रहा है। देश की खुदरा महंगाई अप्रैल में 2.92 फीसद रही जो मार्च के 2.86 फीसदी की तुलना में अधिक है।
कुछ बड़े बैंकों का ऐसे होगा विकास
इसके अलावा मोदी सरकार-2 के अंतर्गत कुछ और बैंकों का मर्जर करके बड़े पांच बैंकों का विकास किया जा सकता है, जिससे देश की बैंकिंग व्यवस्था को मजबूती मिलेगी। इसके बाद सरकार इनको कैपिटल देकर मजबूत बनाने का काम कर सकती ही।
वित्तीय सेक्टर में नकदी संकट
नए वित्त मंत्री के सामने एक बड़ी चुनौती वित्तीय सेक्टर में बने नकदी संकट को दूर करने की होगी। इन्सॉन्वेंसी ऐंड बैंकरप्सी कोड (IBC) एनडीए प्रथम सरकार का एक बड़ा आर्थिक सुधार था। इसका लक्ष्य 10 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा के फंसे कर्जों का कोई समाधान निकालना था, लेकिन अब वित्तीय सेक्टर में नकदी का संकट खड़ा हो गया है, जिसका नए वित्त मंत्री को समाधान निकालना होगा। पिछले साल सितंबर में IL&FS के कर्ज डिफाल्ट शुरू करने के बाद यह संकट बना है।