एक बार फिर बजट आने वाला है। एक बार फिर शिक्षा को लेकर सरकार के दावे और वादों को हर कसौटी पर परखा जा रहा है। इस बार निर्मला सीतारमण के पिटारे में शिक्षा को लेकर क्या होगा ख़ास जानने से पहले एक बार नजर डालते हैं पिछले पांच सालों में सरकार ने प्राथमिक और उच्च शिक्षा पर कितना खर्च किया है। आंकड़े के मुताबिक मोदी सरकार ने साल 2015-2016 में करीब 69,074.76 रुपये खर्च किए वहीं साल 2016-2017 में यह खर्च बढ़कर करीब 72,394.00 रुपये हो गया। इसके बाद साल 2017-2018 में करीब 79,685.95 रुपये और साल 2018-2019 में करीब 85,010.29 रुपये का प्रावधान रखा गया। शिक्षा पर हुए खर्च से यह तो जाहिर है कि साल दर साल शिक्षा को बेहतर बनाने के लिए सरकार ने फंड बढ़ाए। लेकिन हकीकत तो यह कि इस क्षेत्र में जितनी तेजी से काम होने चाहिए वह नहीं हुए हैं।
देश भर में नए AIMS, मेडिकल कॉलेज और IIT खोलने की सरकार की रणनीति अभी भी काफी सुस्त है तो वहीं देश में बढ़ती बेरोजगारी को रोकने की भी है। एक रिपोर्ट की माने तो साल 2017-2018 के बीच शैक्षिक क्षेत्रों में बेरोजगारी का आंकड़ा 54.4% हो गया जो कि पिछले 45 सालों में सबसे ज्यादा है। इस बार के बजट में देशवासियों को उम्मीद है नए शिक्षा नीति पर जिसका इंतजार पिछले पांच सालों से हो रहा है। नए शिक्षा नीति नए ड्राफ्ट के रूप में मानव संसाधन मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक को सोपा जा चुका है। इस नीति मे प्रीस्कूल पर जोर दिया गया है। इसके अलावा सरकार के एजेंडे में कई और केंद्रीय विधालय भी खोलने की है। साथ ही उच्च शिक्षा संस्थानों में 50% सीटें बढ़ाने का भी इरादा है। शिक्षा के क्षेत्र को आगे बढ़ाने के लिए सरकार के पास नीतियां तो बड़ी हैं लेकिन अब देखना यह होगा कि अगले पांच सालों में इसकी स्थिती कैसी रहती है।